दिल पे दस्तक जो दूँ तो बुला लिजिए
दूर रहने की अब ना सजा दिजिए
मेरे नयनो की आप रोशनी हो बनी
आप बिन कुछ ना देखूँ है खुद से ठनी
ज्योति को यूँ ना दृग से जुदा किजिए
दिल पे दस्तक .......
मद में ही मै भटकता रहा दर-बदर
रास आई तन्हाई मुझे इस कदर
इस तन्हाई को अपना पता दिजिए
दिल पे दस्तक .......
दिल में दर्दे हिज्र की अब तामीर हो रही
ख्वाब में आपके मेरा जिक्र भी नही
दश्ते-बेकसी से अब तो फना किजिए
दिल पे दस्तक जो दूँ तो बुला लिजिए
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
प्रिय पवन , सुन्दर भाव हैं पर शिल्प में कसाव नहीं है . मैं कोशिश करता हूँ -
दिल पे दस्तक जो दूँ तो बुला लीजिये
दूर रहने की अब मत सजा दीजिये
मेरे नयनो की हैं आप ही रोशनी
जो न देखूं तो मानो स्वयं से ठनी
नेह को यूँ ना दृग से जुदा कीजिये
अपने मद में भटकता रहा दर-बदर
रास तनहाई आई मुझे इस कदर
दिल लगा पूंछने अब पता दीजिये
दर्द यह हिज्र का है यकीनन सही
ख्वाब में आपके जिक्र मेरा नहीं
मेरी हर र्बेकसी को फना कीजिये
सुन्दर गीत ,सुन्दर प्रवाह ,बधाई प्रेषित है आपको आदरणीय पवन जी
मद में ही मै भटकता रहा दर-बदर
रास आई तन्हाई मुझे इस कदर
इस तन्हाई को अपना पता दिजिए
दिल पे दस्तक ....... बहुत खूब आदरणीय | हार्दिक बधाई |
इस खूबसूरत रचना की हार्दिक बधाई |
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