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ग़ज़ल - जो बच्चों में अभी बच्चा हुआ है ( गिरिराज भंडारी )

1222    1222   122 

जो भारी ही रहा, बैठा हुआ है

उड़ा वो ही जो कुछ हल्का हुआ है

 

ग़लत कहते हैं जो कहते हैं तुमसे

यक़ीं मरकर भी क्या ज़िन्दा हुआ है ?

 

ठहर जा गर्दिशे अय्याम दर पर

ये मंज़र दर्द का देखा हुआ है

 

फटेगा एक दिन बादल के जैसे

जो आँसू आपने रोका हुआ है

 

बुढ़ापा फिर न याद आ जाये उसको

जो बच्चों में अभी बच्चा हुआ है

 

न जाने कौन धोखे बाज निकले

सभी को है यक़ीं , धोखा हुआ है

नहीं समझा सकोगे धर्म अब तुम
सभी का अब ख़ुदा पैसा हुआ है

ज़रा दड़बे से बाहर आयें , देखें
मुझे पूछें नहीं क्या क्या हुआ है

 

ख़बरची एक व्यापारी है, जिसने

ख़बर नुक्सान का रोका हुआ है

********************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

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Comment

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Comment by गिरिराज भंडारी on June 2, 2016 at 9:54pm

आदरणीय श्री सुनील भाई , गज़ल पर उपस्थिति और उत्साह वर्धन के लिये आपका  हृदय से आभार ।

Comment by shree suneel on June 2, 2016 at 9:26pm
बहुत ख़ूब.. उम्दा ग़ज़ल.. संजीदा अशआर.. हार्दिक बधाई आपको इस उम्दा ग़ज़ल के लिए आदरणीय गिरिराज सर जी. सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 2, 2016 at 8:18pm

आदरणीय सुशील भाई , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया आपका ।

Comment by Sushil Sarna on June 2, 2016 at 6:48pm

नहीं समझा सकोगे धर्म अब तुम
सभी का अब ख़ुदा पैसा हुआ है

वाह आदरणीय गिरिराज जी भाई साहिब बहुत ही दिलकश अशआर कहे हैं आपने। हार्दिक बधाई स्वीकार करें सर।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 2, 2016 at 6:20pm

आदरणीया कल्पना जी , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया आपका ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 2, 2016 at 6:19pm

आदरनीया कांता जी , गज़ल की सराहना कर उत्साहवर्धन करने के लिये आपका  हृदय से आभार ।

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on June 2, 2016 at 5:22pm

ग़लत कहते हैं जो कहते हैं तुमसे

यक़ीं मरकर भी क्या ज़िन्दा हुआ है ?

 

ठहर जा गर्दिशे अय्याम दर पर

ये मंज़र दर्द का देखा हुआ है

 

फटेगा एक दिन बादल के जैसे

जो आँसू आपने रोका हुआ है

 

बुढ़ापा फिर न याद आ जाये उसको

जो बच्चों में अभी बच्चा हुआ है

 

न जाने कौन धोखे बाज निकले

सभी को है यक़ीं , धोखा हुआ है

बहुत खूब आदरणीय | बहुत बहुत बधाई सर |

Comment by kanta roy on June 1, 2016 at 9:43pm
ग़लत कहते हैं जो कहते हैं तुमसे
यक़ीं मरकर भी क्या ज़िन्दा हुआ है ?---- वाह ! जिंदगी के कठोर हालातों से निकल कर आये है आपके सभी अशआर गजल के आदरणीय गिरीराज जी । पढ़कर सोचने पर मजबूर हुई , क्या वाकई में हालात ऐसे हो गये है ! हमेशा की तरह शानदार गजल कही है आपने । बहुत बहुत बधाई आपको ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 31, 2016 at 8:51am

आदरणीय बैजनाथ भाई , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया आपका ।

Comment by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on May 30, 2016 at 10:19pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी  साहेब................वाह वाह .............बहुत खूब ...............नमन आपको 

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