For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल.....अब आजमा लें दर्द को

इस्लाह के लिए विशेषकर काफ़िए को लेकर मन में शंकायें हैं 

2122       2122       2122       212

​क्यों नहीं अपनी रगों से हम निकालें दर्द को

है ग़मों की इन्तहां अब आजमा लें दर्द को

बात पहले प्यार से फिर भी नहीं जो मानता 
गेंद की तरहा हवा में फिर उछालें दर्द को

गर ग़मों की चाहतें हैं ज़िन्दगी भर साथ की 
हमसफ़र अपना बना उर में छुपा लें दर्द को

नफरतों के राज में क्या रीत उल्टी चल पड़ी 
दर्द खुद पे रो रहा चल आ संभालें दर्द को

गर खुदा मसरूफ है सुनता नहीं जो ये सदा 
अश्क की स्याही से पन्नों पे सजा लें दर्द को 

वक़्त के हैं हम सिकंदर अपना ये अंदाज़ है 
नींद 'ब्रज' आये तो धरती पे बिछा लें दर्द को 

(​मौलिक एवं अप्रकाशित) 

©बृजेश कुमार 'ब्रज'

Views: 700

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 12, 2016 at 5:21pm

आपके आशीर्वाद से रचना सफल हुई आदरणीया rajesh kumari जी नमन करता हूँ 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 5, 2016 at 9:58am

अच्छी ग़ज़ल कही है ब्रिजेश जी काफिया एकदम दुरस्त है बहुत बहुत मुबारक हो 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 2, 2016 at 8:33pm
भावों को सम्बल प्रदान करने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीया KALPANA BHATT जी स्नेह बनाए रखें
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 2, 2016 at 8:31pm
मनोहारी शब्दों में उत्साहवर्धन के लिए आपको कोटि कोटि नमन आदरणीया kanta roy जी
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 2, 2016 at 8:30pm
रचना पटल पे आपका स्वागत है आदरणीय डॉ पवन मिश्र जी
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 2, 2016 at 8:28pm
आदरणीय गुरुदेव गिरिराज भंडारी जी आपके प्यार और स्नेह के लिए ह्रदयतल से आभार
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 2, 2016 at 8:26pm
आदरणीय Samar kabeer जी आपकी विस्तृत समीक्षा एवं मार्गदर्शन के लिए ह्रदयतल से आभार स्नेह बनाए रखें
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on June 2, 2016 at 3:55pm

गर ग़मों की चाहतें हैं ज़िन्दगी भर साथ की 
हमसफ़र अपना बना उर में छुपा लें दर्द को

बहुत खूब |

Comment by kanta roy on June 1, 2016 at 9:50pm
नफरतों के राज में क्या रीत उल्टी चल पड़ी
दर्द खुद पे रो रहा चल आ संभालें दर्द को---- लाजवाब शेर कही है आपने आदरणीय ब्रजेश जी । बहुत गम्भीर मिजाज़ की गजल है यह । बधाई प्रेषित है ।
Comment by डॉ पवन मिश्र on May 29, 2016 at 11:37pm
आदरणीय बृजेश ब्रज जी बहुत खूबसूरत ग़ज़ल।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
9 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
10 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय, दयावान मेठानी , गीत,  आपकी रचना नहीं हो पाई, किन्तु माँ के प्रति आपके सुन्दर भाव जरूर…"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय दयाराम मैठानी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
15 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय दयाराम मैठानी जी प्रदत्त विषय पर आपने बहुत सुंदर रचना प्रस्तुत की है। इस प्रस्तुति हेतु…"
15 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी, अति सुंदर रचना के लिए बधाई स्वीकार करें।"
16 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"गीत ____ सर्वप्रथम सिरजन अनुक्रम में, संसृति ने पृथ्वी पुष्पित की। रचना अनुपम,  धन्य धरा…"
20 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ पांडेय जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"वाह !  आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त विषय पर आपने भावभीनी रचना प्रस्तुत की है.  हार्दिक बधाई…"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ पर गीत जग में माँ से बढ़ कर प्यारा कोई नाम नही। उसकी सेवा जैसा जग में कोई काम नहीं। माँ की…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय धर्मेन्द्र भाई, आपसे एक अरसे बाद संवाद की दशा बन रही है. इसकी अपार खुशी तो है ही, आपके…"
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

शोक-संदेश (कविता)

अथाह दुःख और गहरी वेदना के साथ आप सबको यह सूचित करना पड़ रहा है कि आज हमारे बीच वह नहीं रहे जिन्हें…See More
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service