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आइना सब को दिखाते हैं कभी खुद देखिये
क्यूँ लगी ये आग हरसू आप खुद ही सोचिये
हुक्मरानों ने खता की बच्चों से बचपन छिना
अब्बू ना लौटेंगे चाहे लाख आंसू पोंछिये
अम्मी के हाथों के सेवइ अम्मा के हाथों की खीर
एक जैसा ही सुकू देती है खाकर देखिये
दिल हमीदों का न तोड़ो गर है कोई सिरफिरा
मौत हिन्दी की हुई मत हिन्दू मुस्लिम बोलिये
जो बचाने में लगा है इस वतन की आबरू
हम बिरोधी उसके हैं या नीतियों के सोचिये
जिस सपोले को पिलाकर दूध जहरीला किया
है उठाये फन खड़ा तो आँख यूं मत फेरिये
हम है हिन्दू वो मुस्लिम ये पता सदियों से था
पर हमें दुश्मन बताकर रोटियाँ मन सेंकिए
जिस वतन से आप खुद है आपकी ये आबरू
क्या यही सीखा है पीकर दूध माँ को बेंचिए
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
अम्मी के हाथों के सेवइ अम्मा के हाथों की खीर
एक जैसा ही सुकू देती है खाकर देखिये....वाह आदरणीय वाह बहुत ही खूबसूरत
आइना सब को दिखाते हैं कभी खुद देखिये
क्यूँ लगी ये आग हरसू आप खुद ही सोचिये ---बहुत खूब कही है आपने आदरणीय डॉ आशुतोष जी .बधाई
आदरणीय श्याम नारायण जी ..रचना पर आपकी प्रतिक्रिया के लिए ह्रदय से आभारी हूँ सादर
जिस वतन से आप खुद है आपकी ये आबरू
क्या यही सीखा है पीकर दूध माँ को बेंचिए
इस खूबसूरत रचना के लिये दिली दाद कुबूल करें आदरणीय | सादर |
आदरणीय गिरिराज भाईसाब ..रचना पर आपकी प्रतिक्रिया के लिए ह्रदय से आभारी हूँ ..आपके मशविरे पर अमल करूगा बह्र गलती से गलत हो गयी उसमे सुधार कर लूँगा सादर प्रणाम के साथ
आदरनीय आशुतोष भाई , अच्छी ग़ज़ल कही है , गज़ल के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ।
ऊपर बह्र आपने ग़लत लिख दी है , सुधार लीजियेगा ।
आदरणीय तेज वीर सर ..रचना पर आपकी प्रतिकिर्या के लिए हृदय से आभारी हूँ ..भूल बश हुयी गलती को मैं सुधार लूँगा /
हार्दिक बधाई आदरणीय डॉ आशुतोष जी! बेहतरीन गज़ल!
हम है हिन्दू वो मुस्लिम ये पता सदियों से था
पर हमें दुश्मन बताकर रोटियाँ मन सेंकिए!
मैंने जो शेर शेयर किया है उसमें "रोटियाँ मत सेकिये" होगा! गल्ती से मन लिखने में आ गया है!
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