"ओ रे बुधिया , अब ये फूस हटाना ही पड़ेगा अपनी टपरी से "
" ई का कह रहे हो बुड्ढा , अब हम सब बिना छत के रहें का ? "
" नाहीं रे , कुछ टीन टपरा जोड़ लेंगे "
" काहे जोड़ लेंगे टीन-टप्पर , क्यु कहे तुम फूस हटाने को ?"
" खेत से आवत रहें तो गाँव के जोरगरहा दुई जन को कुछ कहते सुनत रहे , ओही से कहे है "
" का सुन लिये रहे हो ?"
" कहत रहे कि फुसहा घर गाँव के विकास में घोड़े के लीद पर उगे कुकुरमुत्ते के समान है । "
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
हार्दिक बधाई आदरणीय कांता जी! बेहतरीन प्रस्तुति!
आदरणीया कांता जी , आपकी( कथा ) विकास यात्रा अच्छी लगी , हार्दिक बधाई आपको
/फुसहा घर गाँव के विकास में घोड़े के लीद पर उगे कुकुरमुत्ते के समान है/ एक पंक्ित कथित विकास यात्रा की सम्पूर्ण कहने में सक्षम है। बधाई आदरणीय कांता रॉय जी ।
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