मुक्त कर तम से जकड़ती मुट्ठियाँ
भोर की पहली किरण को भींच ले
व्योम से तुझको पटक कर
पस्त करके होंसलो को
चिन रही है गेह तुझमे
भावनाएँ हीन गुपचुप
मार सूखे का हथौड़ा
तोड़ कर तेरी तिजौरी
बाँध खुशियों की गठरिया
जा रहा है मेघ छुप छुप
भेद बादल की गगरिया
अपने हिस्से की ख़ुशी तू खींच ले
भान तुझको ही नहीं है
छटपटाहट की जमीं के
गर्भ में आकार लेती
तल्खियों की बेल शापित
जो सुखाती जा रही है
ख्वाहिशों की क्यारियों को
खुद तुझे करना पड़ेगा
हिम्मतों का बीज रोपित
भाग्य का पौधा उगाने
आज का सूरज नया तू सींच ले
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
बहुत खूबसूरत रवां नवगीत है बहुत बहुत बधाई आपको सादर |
हार्दिक बधाई आदरणीय राजेश कुमारी जी! बेहतरीन सार गर्भित प्रस्तुति!
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