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गजल(आजकल मन लग रहा.....)

आजकल मन लग रहा नक्कारखाना हो गया
कुर्सियों के खेल में सच भी फसाना हो गया।1

योग का मतलब अभी तक जोड़ना समझा गया
सोच की बलिहारियाँ अब तो घटाना हो गया।2

कर रहा परहेज जिससे चल रहा था बावरा
गर्ज एेसी पड़ गयी फिर गर लगाना हो गया।3

घूँघटों की ओट से ही चल रहे थे तीर सब
बह गयी ऐसी हवा मुखड़ा दिखाना हो गया।4

शब्द साधे थे कभी जिनको निशाना कर यहाँ
आज उनके पाँव में कैसे सिढ़ाना हो गया।5

तुम नशे में चल रहे हो, मैं नशा करता नहीं,
गीत दोनों मिल गये बेमेल गाना हो गया।6

लोमड़ी अब बेझिझक अंगूर खट्टे खा रही
आँसुओं को अब 'मनन'फिर से लजाना हो गया।7
मैलिक व अप्रकाशित@मनन

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Comment

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Comment by Manan Kumar singh on June 30, 2016 at 10:33pm
आभार आदरणीय।
Comment by कवि - राज बुन्दॆली on June 30, 2016 at 4:28pm

वाह वाह वाह आदरणीय,,,कमाल की गझल हुई है बधाई

Comment by Manan Kumar singh on June 27, 2016 at 9:57am
आभार आदरणीय गिरिराज भाई।
Comment by Manan Kumar singh on June 27, 2016 at 9:56am
आभार आ. सतविंर जी

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Comment by गिरिराज भंडारी on June 26, 2016 at 8:32pm

आदरणीय मनन भाई , अच्छी गज़ल कही है , दिली बधाइयाँ स्वीकार करें ।

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on June 26, 2016 at 9:42am
सुंदर अति सुंदर।सादर नमन आदरणीय
Comment by Manan Kumar singh on June 23, 2016 at 5:04pm
आभार आ. आशुतोष जी।
Comment by Manan Kumar singh on June 23, 2016 at 5:03pm
आभार आ. कांता जी।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 23, 2016 at 4:45pm

आदरणीय मनन जी इस सुन्दर सार्थक प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर

Comment by kanta roy on June 23, 2016 at 2:51pm

योग का मतलब अभी तक जोड़ना समझा गया
सोच की बलिहारियाँ अब तो घटाना हो गया---वाह !वाह ! ----समय काल  ही  विपरीत  चल  रहा  है  आदरणीय मनन जी  अब  तो  यही  है  जो  है !  शानदार  ग़ज़ल  है  ये  भी  आपकी .बधाई  प्रेषित  है . 

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"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
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"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
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"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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