For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जीने की राह (लघुकथा)

'करूं या न करूं?' अनिर्णय की स्थिति में वह बंद कमरे में आइने के सामने आराम कुर्सी पर बहुत ही तनावग्रस्त बैठा हुआ था। तभी शैतान उसके दिमाग़ पर हावी होते हुए बोला- "अब क्या हुआ बंधु! इन्टरनेट पर सत्य कथायें पढ़कर भी कोई तरीक़ा नहीं अपना सके! मेरी बात मान लो, फाँसी ही सबसे उत्तम तरीक़ा है! आजकल इसी का ट्रैंड है युवा पीढ़ी में!"
"सही कह रहे हो तुम! देखो मैंने पूरी तैयारी भी कर ली थी, फाँसी लगाता या इस पाँचवीं मंज़िल से कूंद कर काम तमाम कर लेता, लेकिन ..."
"लेकिन क्या?" शैतान ने कुछ क्रोधित होकर पूछा।
लैपटॉप की स्क्रीन पर नज़र डालते हुए उसने कहा- "यह लघुकथा पढ़कर मैंने तय कर लिया कि इस तरह से मरने के बाद दूसरी दुनिया की अदालत में 'भगोड़ा' करार दिए जाने और नरक का कष्ट भोगते रहने से तो अच्छा इसी दुनिया के संघर्षों के साथ जीना है!"
"मतलब, अब तुम ख़ुदकुशी नहीं करोगे, मुझे शर्मिन्दा करोगे!" - शैतान ने उसके सिर में तेज़ दर्द पैदा करते हुए कहा - " ये लघुकथा क्या बला है? अब ये भी मेरे काम बिगाड़ेंगीं! मेरी सारी मेहनत बेकार गई न, झूठे -ग़द्दार कहीं के!"
"तुम मुझे झूठा और ग़द्दार क्यों कह रहे हो!" उसने फाँसी की रस्सी दूसरी ओर फेंकते हुए कहा।
"ज़िन्दगी के संघर्षों से डरकर मौत को गले लगा रहे थे; मौत को ठुकरा दिया! अपने माँ-बाप और परिवार से जो वादे किए थे, वे भी सब झूठे थे न!
न तुमने मौत हासिल की और न ही अपनों का विश्वास और प्यार! तो हुए न तुम झूठे और ग़द्दार!" इतना कहकर शैतान उसके दिमाग़ से उतर कर भाग गया ।
अब वह तनाव मुक्त सा महसूस कर रहा था। उसने अपना लैपटॉप उठाया और आराम कुर्सी पर झूलते हुए फिर वही लघुकथा पढ़ने लगा!


[मौलिक व अप्रकाशित]

Views: 719

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on June 28, 2016 at 3:36pm
पुनः टिप्पणी द्वारा रचना का अनुमोदन करने व प्रोत्साहन देने के लिए हृदयतल से बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय सतविंदर कुमार जी।
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on June 26, 2016 at 6:43pm
बहुत ही अच्छा आदरणीय उस्मानी जी।आपकी श्रेष्ठ कल्पनाशीलता को ही दर्शाता है।एक लघुकथा की पृष्ठभूमि पर अद्भुत रचना रच डाली आपने।यदि किसी ने आदरणीया राहिला जी की रचना "भगोड़े" नहीं पढ़ी तो उनके लिए थोड़ी सी सुस्पेंस जरूर रहती है।तो भी रचना अपने लक्ष्य को साधने में कामयाब ही जान पड़ी।सादर
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on June 26, 2016 at 4:01pm
रचना की स्नेहिल सराहना के लिए हृदयतल से बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय तेज वीर सिंह जी।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on June 26, 2016 at 4:00pm
अगर आप को यह 'सीक्वल सा' लगा तो कैसा लगा? अच्छा या बुरा? सही या ग़लत? यह भी तो बताइयेगा। रचना पर समय देकर प्रोत्साहित करने के लिए बहुत बहुत हार्दिक धन्यवाद आदरणीय सतविंदर कुमार जी।
Comment by TEJ VEER SINGH on June 26, 2016 at 1:34pm

हार्दिक बधाई शेख उस्मानी जी!मन की आंतरिक ऊहापोह को बड़े ही सलीके से प्रस्तुत किया है!

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on June 26, 2016 at 9:48am
ये तो सीक्वल सा बन गया।हार्दिक बधाई आदरणीय उस्मानी जी व आदरणीया राहिला जी।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on June 24, 2016 at 4:11pm
आदरणीया राहिला जी की उस बेहतरीन लघुकथा के पाठक हम भी हैं और इस लघुकथा का नायक भी। इस नायक ने लैपटॉप पर वह लघुकथा पढ़कर प्रेरणा ली और जीने की राह उसे मिली, तो यह केवल लघुकथा से मिली 'प्रेरणा' का बेहद सकारात्मक मामला है। फिल्म की सीक्वल जैसा कह लें या प्रेरणा आधारित कह लें, हर पाठक की राय भिन्न भिन्न हो सकती है। एक पाठक के तौर पर पुनः उस लघुकथा के कथ्य सम्प्रेषण के लिए आदरणीया राहिला जी को तहे दिल से बहुत बहुत मुबारकबाद। आदरणीय सुनील वर्मा जी व आदरणीया राहिला जी को रचना पर समय देकर विचार साझा करने के लिए हृदयतल से बहुत बहुत धन्यवाद। आदरणीय वरिष्ठ गुणीजन की टिप्पणियों व मार्गदर्शन की प्रतीक्षा रहेगी।
Comment by Rahila on June 24, 2016 at 12:39pm
चलिए!किसी की प्रेरणा तो बनी "भगौड़े" बहुत शुक्रिया आदरणीय उस्मानी जी!ये सन्देश आगे पहुँचाने के लिये।सादर आभार।और रही बात रचना की तो बहुत सार्थक लेखन हुआ।बहुत बधाई आपको इस अनुपम कृति के लिए।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on June 24, 2016 at 1:43am
रचना-पटल पर उपस्थित हो कर अपने विचार साझा करने व सराहना करने के लिए तहे दिल से बहुत बहुत हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।
बिलकुल सही कहा आपने लेकिन मेरा सादर विनम्र निवेदन है कि उस कथा को नहीं पढ़ सके पाठक के तौर पर भी इस रचना को एक बार पुनः पढ़कर देखियेगा आपके द्वारा इंगित 'असमंजस' महसूस नहीं होगा। मैंने स्वयं कई बार ऐसा करने के बाद ही कथा पोस्ट की है। उस कथा से प्रेरित होते हुए भी यह एक स्वतंत्र कथा के रूप में भी स्पष्ट व असमंजस रहित है। आपने यह स्पष्ट नहीं किया है कि आपको यह रचना कितनी और क्यों पसंद आई या नहीं आई!!!!
आप यदि अपनी टिप्पणी कुछ दिनों बाद करतीं, तो शायद केवल इस वाली रचना के पाठकों की राय पहले हासिल होने पर बात और स्पष्ट हो जाती।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on June 24, 2016 at 1:32am
मेरी इस रचना पर समय देकर अनुमोदन करने व प्रोत्साहन देने के लिए हृदयतल से बहुत बहुत हार्दिक धन्यवाद आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी व आदरणीय राजेन्द्र कुमार दुबे जी।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
16 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
17 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
17 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
17 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
17 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
17 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
17 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
20 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय, दयावान मेठानी , गीत,  आपकी रचना नहीं हो पाई, किन्तु माँ के प्रति आपके सुन्दर भाव जरूर…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय दयाराम मैठानी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service