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आदरणीय सतविन्द्र कुमार जी सादर, सुंदर दोहे. बहुत-बहुत बधाई.दोहे मात्रिक और गेयता के आधार पर अच्छे रचे हैं किन्तु कुछ शब्दों के उपयोग में सावधानी बरती जाने की आवश्यकता है.
माँ ममता की मूर्त है यहाँ 'मूर्ति ' शब्द होना चाहिए. वहीँ इस दोहे में "पीना-खान" और चौथे दोहे में "सन्तन" शब्द को बदलने पर विचार करें.
"लेकर समाज में चलें" इस चरण को // लेकर चलें समाज में // कहना अधिक गेय होगा. सादर.
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