1- नाम वरों में छुप रहे
नामवरों में छुप रहे , सारे गलती बाज
सच के आगे किस तरह , मची हुई है खाज
मची हुई है खाज , खून उभरा है तन में
लेकिन कोई लाज , कहाँ कब दिखती मन में
सत्य गिनेगा नाम , कभी तो जानवरों में
आज छिपालो झूठ, किसी का नामवरों में
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2- गिरगिट मानव देख
धोती में अपनी कभी , नही देखते दाग
और लगाते हैं सदा , अन्य वसन में आग
अन्य वसन में आग , लगाते हैं वो सारे
जिनको डर है सत्य, कहीं ना उनको मारे
गिरगिट मानव देख , सदा सच्चाई रोती
चलो दिखायें दाग , निकालें उनकी धोती
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गिरिराज भंडारी
Comment
वाह आदरणीय गिरिराज भाई साहिब दोनों ही कुण्डलिया हास्य समावेश के साथ सन्देश का सम्प्रेषण भी कर रही हैं। इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय। दूसरी कुण्डलिया में मैं आदरणीय रामबली गुप्ता जी सहमत हूँ।
वाह वाह बढ़िया तंज कसा है दोनों कुंडलियों में आद० गिरिराज जी
दोनों कुण्डलियाँ शिल्प के हिसाब से मजबूत हैं तथा शानदार हैं
दूसरी कुंडलिया में अंतिम चरण में ये थोडा सा बदलाव करेंगे तो शायद कहन के हिसाब से बेहतर होगा
चल दिखलायें दाग---चलो दिखाएं दाग
आपको बहुत बहुत बधाई आदरणीय
आदरणीय राम बली भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका हृदय से आभार ।
आदरणीय , कमियाँ रह जाने की पूरी सम्भावना है , मैने अभी अभी कुँडलियों पर अभ्यास शुरू किया , खुल के अगर कुछ कहें तो सुधार की कोशिश करूँगा । आभार आपका ।
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