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आदरणीय मनन भाई , अच्छी गज़ल कही है , हार्दिक बधाइयाँ । एक '' है '' की कमी मिसरों मे लगती है , देखियेगा ।
शब्द मय चुभते नुकीले दुर्ग में
राह भूला फँस चला वह अाजकल। -- राह भूले , हैं फँसा वह आजकल --- बात कुछ साफ आयेगी
ऐसे ही कुछ सुधार की संभावनाये मिसरों मे हैं अभी - सोच लीजियेगा
चादरें हैं श्वेत सबको क्या पता
काजलों में है रँगा वह अाजकल।7
बहुत खूब आदरणीय |
अच्छा प्रयास है .. अमूमन एक "है" की कमी खल रही है ..
मसलन
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आहटों से डर रहा है अाजकल
चाहतों का हो गया है आजकल
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फूल को समझा रहा है असलियत
सुरभियों को डँस रहा है अाजकल।
आहटों से डर रहा वह अाजकल
चाहतों का बस हुआ वह आजकल।1
फूल को समझा रहा है असलियत
सुरभियों को डँस रहा वह अाजकल।2
वाह अादरणीय मनन कुमार जी खूबसूरत अहसासों की इस दिलकश ग़ज़ल के लिए दिल से बधाई स्वीकार करें।
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