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दोस्ती और दग़ाबाजी (लघु कथा। ) जानकी बिष्ट वाही

सुबह से दोपहर होने को आई।बाहर चिलचिलाती धूप और अंदर घुटन। जगदीश ये समझ नहीं पा रहा कि मन की बैचेनी है या कुछ और।
चपरासी के हाथ वह अपने आने की ख़बर अंदर तक पहुंचा चुका है। रतनुवा (रतन) बचपन से जवानी तक,गाँव में दिन भर उसके पीछे -पीछे डोलता था।उसका जिगरी यार है।

" भाई ! एक बार और कह दो कि गाँव से जगदीश आया है।" उसने चपरासी की चिरौरी की।

चपरासी अंदर चला गया और तुरंत लौट कर बोला -
"अंदर मीटिंग चल रही है।"

अनपढ़ रतनुवा का भी राजयोग निकला।विपक्षी पार्टी ने पर्दे के पीछे रहकर उसे निर्दलीय खड़ा कर विधान सभा की सीट जीत ली।और यही निर्दलीय सीट प्रदेश सरकार में, सरकार बनाने में निर्णायक साबित हुई।
हाथ में बी. ए.की डिग्री लेकर बड़ी उम्मीदों के साथ जगदीश, राजधानी पहुँचा।लँगोटिया यार रतनुवा के होते अब किस बात की चिंता ...

ऊपर सूरज ढलान पर है।उम्मीद भरी आँखों से चपरासी को देखते हुए जगदीश ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी। मानों कह रहा हो ,एक बार और उसके आने की खबर अंदर देदे।

कुदरत का कमाल चपरासी भी उसकी मौन की भाषा समझ गया।और बोला-
"तुम भी कहाँ खड़े होकर दो वक़्त की रोटी का जुगाड़ करने की सोच रहे हो?"

" क्यों ? अब मेरा मित्र,इस लायक है कि चाहे तो कुछ भी कर सकता है।"जगदीश को अपनी ही आवाज़ अनजानी सी लगी।

" भाई ! ये कोई कृष्ण भगवान का महल थोड़े ना है।ये तो सियासत की ज़मीन है।यहाँ दोस्ती नहीं सिर्फ़ दग़ा मिलती है।" चपरासी ने जगदीश को दयनीय नज़रों से देखते हुए कहा।


जानकी बिष्ट वाही
मौलिक एवम् अप्रकाशित
नॉएडा-उत्तर प्रदेश

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Comment by Dr. Vijai Shanker on July 10, 2016 at 8:19pm
दोस्त राजनीति में चला गया ....... मतलब गया , कहानी नहीं कुछ हकीकत है। बधाई , आदरणीय सुश्री जानकी बिष्ट जी , सादर।
Comment by vijay nikore on July 10, 2016 at 2:30pm

अच्छी लघुकथा लिखी है। बधाई, आदरणीया जानकी जी।

Comment by Rajendra kumar dubey on July 10, 2016 at 1:04pm
ये सियासत की जमीन है यहाँ दोस्ती नहीं सिर्फ़ दगा मिलती हैं सही परिभाषित किया आपने सियासतदानों को आपको हार्दिक बधाई।
Comment by Ashok Kumar Raktale on July 10, 2016 at 12:16pm

वाह ! सियासतदानों के बदलते चरित्र पर बहुत सुंदर लघुकथा हुई है. बहुत-बहुत बधाई. सादर.

Comment by Rahila on July 10, 2016 at 7:44am

कमाल की पंच लाइन प्रिय जानकी दीदी!उसपर सौ आने खरी बात ये की ये सियासत की ज़मीन है।बहुत बेहतरीन रचना ।खूब बधाई ।सादर

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