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जेब में सहमा हुआ इतवार है (ग़ज़ल 'राज ')

२१२२ २१२२ २१२

मजहबों के बीच जो दीवार है

डालती उस नींव को सरकार है

हाथ में जिसके किताबें चाहिए

आज उसके हाथ में हथियार है

जिन्दगी इक बार मिलती है यहाँ

मर रहा इंसान सौ सौ बार है

ख्वाहिशें बच्चों की पूरी क्या करें

जेब में सहमा हुआ इतवार है

पढ़ नहीं सकता यहाँ इक हर्फ़ जो

बेचता सड़कों पे वो अखबार है

राम रहिमन बिक रहे बाजार में

फल रहा बस धर्म का व्यापार है

नारियाँ महफूज़ बोलो हैं कहाँ

आज सड़कों पर लुटे संसार है

गुम कहाँ जाने हुए वो कहकहे

हर कोई दिखता यहाँ गमख्वार है

बादलों की देख के दादा गिरी

आज सावन भी हुआ बेजार है

दुश्मनी केवल यहाँ इंसान में

जानवर को जानवर से प्यार है

मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by pratibha pande on July 12, 2016 at 7:47pm

हाथ में जिसके किताबें चाहिए

आज उसके हाथ में हथियार है......सही कहा , ये ही हो रहा है  कश्मीर  घाटी में  

बादलों की देख के दादा गिरी

आज सावन भी हुआ बेजार है......उत्तराखंड में दादागिरी करने के बाद अब बादल मध्य प्रदेश में  दादागिरी कर रहे हैं,

अपने आस पास से उठाकर आप बहुत खूबसूरती  से सच को रखती हैं ..... हार्दिक बधाई प्रेषित है आपको आदरणीया राजेश कुमारी जी  

Comment by Samar kabeer on July 12, 2016 at 3:43pm
हो रहा ग़मगीन ख़ुद ग़मख्वार है"
ये मिसरा ज़ियादा सटीक है बहना ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 12, 2016 at 11:40am

आद० समर  भाई  जी  आप इस्सलाह दीजिये कौन सा मिसरा यहाँ रखूं यदि ये ठीक है क्या इसे ही रहने दूँ या जो नया सोचा है उसे रखूँ--- 

गुम कहाँ जाने हुए वो कहकहे

हो रहा ग़मगीन खुद गमख्वार है या --हर कोई ग़मगीन है गमख्वार है --ऐसे लिखूँ 

Comment by Samar kabeer on July 12, 2016 at 11:29am
बहना,"ग़मख्वार"शब्द पर में भी रुका था परन्तु इसके भाव देख कर कुछ न कहा, मेने ये भाव लिया कि हर कोई ग़मख्वारी में मसरूफ़ है इस कारण क़हक़हे गुम हो गए ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 12, 2016 at 11:24am

आपका  बहुत बहुत आभार  आदरणीय गिरिराज जी |आपकी बात  सही है यदि हम इजाफत के अनुसार गमेख्वार करेंगें तभी मात्राएँ १२२१ होगी वरना गमख्वार एक साथ  २ २१ है मैं दरअसल यही शब्द लेना चाह रही हूँ इसलिए  इसे  ही  रख रही हूँ --

गुम कहाँ जाने हुए वो कहकहे

हो रहा ग़मगीन खुद गमख्वार है

  

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 12, 2016 at 11:10am

आदरणीया, अगर  गमख़्वार की ज़िद न हो तो ऐसा भी कह सकते हैं --

गुम कहाँ जाने हुए वो कहकहे

ज़ेह्नियत से क्या जहाँ बीमार है  

वैसे आपने जो सुधार किया है वो भी सही है ,  गम और ख़्वार को अलग अलग शब्द मानें तो  , नही तो ग़मख्वार  -1221 हो जायेगा , इस विषय पर मै कोई अंतिम बात नही कह सकता , जैसा आप उचित समझें ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 12, 2016 at 10:55am

आद० गिरिराज जी आपने बड़ी सूक्ष्मता से ग़ज़ल की समीक्षा जी है आपने उस महीन त्रुटी की तरफ इशारा किया है जिसको आद० समर भाई भी नहीं पकड़ पाए आपकी बहुत बहुत शुक्रगुजार हूँ सच में ये शब्द मिसरे के भाव के साथ मेल नहीं कर रहा |क्या इसको ऐसा करना ठीक रहेगा --

गुम कहाँ जाने हुए वो कहकहे

हो रहा ग़मगीन खुद गमख्वार है


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 12, 2016 at 10:46am

आद०  डॉ० आशुतोष जी आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से आभारी हूँ  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 12, 2016 at 10:21am

आदरणीया राजेश जी , बहुत अच्छी गज़ल कही है , दिल से बधाइयाँ स्वीकार करें ।

आदरणीया -- 1- गमख़्वार   -- का अर्थ  , गम मे साथ देने वला , सहानुभूति रखने वाला होता  है , क्या आपका शेर इस अर्थ मे सही है ?

गुम कहाँ जाने हुए वो कहकहे

हर कोई दिखता यहाँ गमख्वार है 

2 -

दुश्मनी केवल यहाँ इंसान में   ---  दुश्मनी देखी यहाँ इंसान मे     -- शायद और सही  लगे । ज़रूरी नही है बदलाव एक सलाह है ये ।

जानवर पशु पक्षियों में प्यार है

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 11, 2016 at 11:13pm
इस खूबसूरत ग़ज़ल पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीया राजेशजी

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