For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नफरत का रिश्ता--
पूरा गाँव पार कर गए पंडित लेकिन दुक्खू नहीं दिखा| जल्दी जल्दी कदम बढ़ाते वो गाँव से बाहर निकल गए, बहुत जरुरी काम से जा रहे थे और ऐसे में दुक्खू न दिखे, यही मना रहे थे| पंडित को लगा कि लगता है गाँव के बाहर चला गया है आज, राहत की सांस ली उन्होंने| पंडित पूरे नियम कानून वाले थे, बिना नहाए धोए अन्न ग्रहण नहीं करते थे और सारी गणना करके ही घर से निकलते थे| कब किस दिशा में जाना है, कब नहीं, सब देख समझ ही किसी यात्रा की तैयारी करते थे| ख़ुदा न खास्ता अगर किसी ने छींक दिया या निकलते ही सामने कोई ऐसा व्यक्ति पड़ जाए जिसमें कोई शारीरिक विकृति हो तो यात्रा थोड़ी देर के लिए स्थगित कर देते थे| और दुक्खू तो बचपन से ही एकनेत्री था और जब भी वो पंडित के सामने पड़ जाता तो पंडित उसे जरूर बुरा भला बोलते थे|
दुक्खू को भी इसमें मज़ा आता था, वैसे भी उसमें समाज ने आत्मसम्मान बचने ही कहाँ दिया था| अकेला ही रहता था और गाँव में जिसके यहाँ काम मिल जाये, कर लेता और पेट भर लेता था| रूप रंग के चलते कभी न तो शादी के बारे में उसने सोचा और न ही गाँव में किसी और ने| उसे ये अच्छी तरह से पता था कि अगर पंडित कहीं बाहर जा रहे हों तो उस समय अगर वो उनके सामने पड़ जाए तो पंडित अपनी यात्रा थोड़ी देर के लिए जरूर स्थगित कर देते हैं| इस काम को करने में उसे बेहद मजा आता था और जब कभी उसे मौका मिलता, वो जरूर उनके सामने पड़ता और उनकी गालिओं को प्रसाद की तरह ग्रहण करता|
पंडित दिन भर काम में व्यस्त रहे, बगल के गाँव में एक पूजा थी और उसके बाद एक नामकरण संस्कार भी था| लौटते समय शाम ढल गयी थी, गाँव में जब घुसे तो लोगों के दरवाजों पर लालटेन जल गयी थी| घर तक चले आये, दुक्खू फिर नहीं दिखा तो कुछ अजीब लगा उनको| शायद ही कोई दिन बीतता हो जब दुक्खू उन्हें नहीं दिखा हो और उन्होंने उसे भला बुरा न कहा हो| घर में मुंह हाथ धोते समय उन्होंने पण्डिताइन से ऐसे ही पूछ लिया "अरे आज दुक्खुआ दिखा था क्या, मुझे नहीं दिखा"|
पण्डिताइन ने उनको अचरज से देखा, ये आज क्या पूछ रहे हैं पंडितजी| कहाँ दुक्खुआ के नाम से ही भड़क जाते थे और आज उसके बारे में पूछ रहे हैं| अचरज दबाते हुए उन्होंने कहा "ना, हमको भी नहीं दिखा आज, लगता है गाँव से बाहर चला गया है"|
"हूँ" कहकर पंडित ने ने सर हिलाया और खटिया पर बैठ गए| पण्डिताइन ने भोजन परोस दिया और भोजन करके वो सोने चले गए| दिन भर की थकान से नींद जल्दी आ गयी और कुछ ही देर में उनके खर्राटे गूंजने लगे|
सुबह दिशा मैदान के बाद पंडित ने स्नान किया और गाँव में निकले| कुछ लोगों के यहाँ बैठकर गपशप किया और फिर भोजन के लिए वापस घर की ओर चल पड़े| रास्ते भर दुक्खू का ख्याल उनके मन में आता रहा और वो थोड़ा बेचैन होने लगे| आखिर रहा नहीं गया तो बद्री के घर पर रुके और उससे पूछ ही लिया "अरे बद्री, कल से ही दुक्खुआ नहीं दिख रहा, कहीं चला गया है क्या?
"नहीं पंडितजी, उसकी तबियत खराब है| आज हमारे खेत में कुछ काम करना था उसको लेकिन नहीं आया तो मैंने पता लगाया"|
"अच्छा, कुछ दवा दिलाया की नहीं उसको", पंडित चिंतित हो गए|
"हां, दिला दिया है, कल तक शायद ठीक हो जायेगा", बद्री ने कहा तो पंडित की जान में जान आई|
घर पहुँच कर खाना खाने बैठे तो उनके मुंह से निकल गया "पण्डिताइन, दुक्खुआ की तबियत खराब है, इसीलिए नहीं दिखा"|
पण्डिताइन एक बार फिर अचरज से उनको देखे जा रही थीं| उनको दुक्खू और पंडितजी का ये रिश्ता समझ में नहीं आ रहा था| पंडित खाना खाते समय भी दुक्खू के ठीक होने के बारे में ही सोच रहे थे, आखिर नफरत का ही सही, एक रिश्ता तो था ही उससे|
मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 630

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विनय कुमार on July 27, 2016 at 9:08pm

इस विस्तृत टिपण्णी के लिए बहुत बहुत आभार आ प्रतिभा पण्डे जी 

Comment by pratibha pande on July 27, 2016 at 9:00pm

एक तरफ गहरे जड़ें जमाये समाज की कुछ कुरीतियाँ और दूसरी तरफ मानवीय संवेदनाएं जो किसी की भी किसी भी तरह आदत पड़ जाने पर उसे भूल नही पाती हैं  एक संवेदनशील रचना ,बहुत प्रभावी पर सहज ढंग से कही गई ,  हार्दिक बधाई प्रेषित है आपको आदरणीय विनय कुमार जी ..सादर 

Comment by विनय कुमार on July 27, 2016 at 5:48pm

बहुत बहुत आभार आ राजेंद्र कुमार दुबे जी    

Comment by Rajendra kumar dubey on July 27, 2016 at 5:06pm
मिलो न तुम तो हम घबराये
मिलो तो आँख चुराये।
कुछ रिश्ते एसे ही होते है एक बेहतरीन लघु कथा के लिये आदरणीय विनय कुमार जी आपको हार्दिक बधाई
Comment by विनय कुमार on July 27, 2016 at 12:57pm

बहुत बहुत आभार आ अशोक कुमार रक्ताले जी, सच में ऐसे भी रिश्ते होते हैं

Comment by Ashok Kumar Raktale on July 27, 2016 at 8:32am

कामे=कायम  पढ़ें

Comment by Ashok Kumar Raktale on July 27, 2016 at 8:32am

//आखिर नफरत का ही सही, एक रिश्ता तो था ही उससे|//...........बिलकुल निरंतरता एक अनकहा रिश्ता कामे कर ही देती है. सुंदर प्रस्तुति. बहुत-बहुत बधाई. सादर.

Comment by विनय कुमार on July 25, 2016 at 9:55pm

बहुत बहुत आभार आ जवाहर लाल सिंह जी, सच में ऐसे भी रिश्ते होते हैं

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on July 25, 2016 at 9:39pm

होता है कभी कभी  ऐसा  भी होता है. बहुत बार हम किसी को बहुत डांटते हैं पर अंदर ही अंदर लगाव सा रहता है!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज जी इस बह्र की ग़ज़लें बहुत नहीं पढ़ी हैं और लिख पाना तो दूर की कौड़ी है। बहुत ही अच्छी…"
1 hour ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. धामी जी ग़ज़ल अच्छी लगी और रदीफ़ तो कमल है...."
1 hour ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"वाह आ. नीलेश जी बहुत ही खूब ग़ज़ल हुई...."
1 hour ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय धामी जी सादर नमन करते हुए कहना चाहता हूँ कि रीत तो कृष्ण ने ही चलायी है। प्रेमी या तो…"
1 hour ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय अजय जी सर्वप्रथम देर से आने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ।  मनुष्य द्वारा निर्मित, संसार…"
1 hour ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । हो सकता आपको लगता है मगर मैं अपने भाव…"
17 hours ago
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"अच्छे कहे जा सकते हैं, दोहे.किन्तु, पहला दोहा, अर्थ- भाव के साथ ही अन्याय कर रहा है।"
19 hours ago
Aazi Tamaam posted a blog post

तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या

२१२२ २१२२ २१२२ २१२इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्यावैसे भी इस गुफ़्तगू से ज़ख़्म भर…See More
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"परम् आदरणीय सौरभ पांडे जी सदर प्रणाम! आपका मार्गदर्शन मेरे लिए संजीवनी समान है। हार्दिक आभार।"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधमुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"ऐसी कविताओं के लिए लघु कविता की संज्ञा पहली बार सुन रहा हूँ। अलबत्ता विभिन्न नामों से ऐसी कविताएँ…"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

छन्न पकैया (सार छंद)

छन्न पकैया (सार छंद)-----------------------------छन्न पकैया - छन्न पकैया, तीन रंग का झंडा।लहराता अब…See More
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service