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हर कली अब कमल हो रही है

212  212  212  2

 

जिन्दगी अब सरल हो रही है

बात हर इक गजल हो रही है 

 

दलदली हो चुकी है जमीं पर,

हर कली अब कमल हो रही है

 

तितलियाँ भर रहीं हैं उड़ानें

नीति बेशक सफल हो रही है

 

आ रहा है कहीं से उजाला

रौशनी आजकल हो रही है

 

मखमली हो रही हैं हवाएं

मेंढकी भी विकल हो रही है

 

है दरोगा बड़ा लालची वो

धारणा अब अटल हो रही है

 

मौलिक/अप्रकाशित.

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Comment by Ashok Kumar Raktale on July 29, 2016 at 1:26pm

आदरणीय समर कबीर साहब सादर नमस्कार, आपसे दाद पाना सुखद लगा. सही तो यही है की मंच पर आपकी सक्रियता के कारण ही मैंने गजल मंच पर पोस्ट करना प्रारम्भ किया है. आपकी इस्लाह का सदैव स्वागत है. सादर.

"तितलियाँ भर रही हैं उड़ानें"......यह मिसरा और शेर महिलाओं के वायुसेना में जाने को लेकर कहा है. शायद आप ऊँचाई के लिए तितलियों का बिम्ब सही नहीं मान रहे हैं ऐसा लगता है.

"रौशनी हरिक पल हो रही है"...........क्या इसको ऐसा कर लेना ठीक होगा. "रौशनी आजकल हो रही है"

"घर से रंगत मुग़ल हो रही है".............यहाँ  शब्द  "मुग़ल" मंगोलियन या अफगानी, के लिए कहा है. यदि सही शब्द "मुग़्ल" है तो फिर यह शेर ही हटा देता हूँ.

 पुनः आपकी इस्लाह का इंतज़ार है. सादर.

Comment by Ashok Kumar Raktale on July 29, 2016 at 1:13pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई जी सादर , प्रस्तुति पर उत्साहवर्धन के लिए दिल से आभार. सादर.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 29, 2016 at 12:22pm

बहुत  सुन्दर  वाह्ह  वाह  आद० अशोक रक्ताले जी बढ़िया ग़ज़ल  लिखी है

आद०  समर भाई जी के मशविरे भी स्वागत योग्य हैं तितलियाँ  भर रहीं हैं उड़ानें--

तितलियाँ छू  रही  आसमां को -----कर  सकते हैं 

आपको बहुत बहुत बधाई 

Comment by Samar kabeer on July 29, 2016 at 12:09pm
जनाब अशोक कुमार रक्ताले जी आदाब,आजकल तो आप कमाल पर कमाल कर रहे हैं, बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल से नवाज़ा है आपने मंच को,दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं, नाचीज़ के कुछ सुझाव हैं, अगर किसी क़ाबिल हों :-

1) "तितलियाँ भर रही हैं उड़ानें"

उड़ानें भरना ऊँचाई पर उड़ने के लिये इस्तेमाल होता है,इस मिसरे को एक बार और देखियेगा ।

2) "रौशनी हरिक पल हो रही है"

:- इस मिसरे में लय बाधित हो रही है, इसे कुछ और समय दीजिये।

3) "घर से रंगत मुग़ल हो रही है"

:- इस मिसरे में "मुग़ल" का अर्थ आपने क्या लिया है ? मुझे यह अर्थ हीन लग रहा है,सही शब्द है "मुग़्ल",देख लीजियेगा ।
बाक़ी अशआर ठीक हैं,उनके लिये पुनः बधाई आपको ।
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 29, 2016 at 11:31am

आ0 भाई अशोक जी इस सुंदर गजल के लिए हार्दिक बधाई ।

कृपया ध्यान दे...

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