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जिन्दगी अब सरल हो रही है
बात हर इक गजल हो रही है
दलदली हो चुकी है जमीं पर,
हर कली अब कमल हो रही है
तितलियाँ भर रहीं हैं उड़ानें
नीति बेशक सफल हो रही है
आ रहा है कहीं से उजाला
रौशनी आजकल हो रही है
मखमली हो रही हैं हवाएं
मेंढकी भी विकल हो रही है
है दरोगा बड़ा लालची वो
धारणा अब अटल हो रही है
मौलिक/अप्रकाशित.
Comment
आदरणीय समर कबीर साहब सादर नमस्कार, आपसे दाद पाना सुखद लगा. सही तो यही है की मंच पर आपकी सक्रियता के कारण ही मैंने गजल मंच पर पोस्ट करना प्रारम्भ किया है. आपकी इस्लाह का सदैव स्वागत है. सादर.
"तितलियाँ भर रही हैं उड़ानें"......यह मिसरा और शेर महिलाओं के वायुसेना में जाने को लेकर कहा है. शायद आप ऊँचाई के लिए तितलियों का बिम्ब सही नहीं मान रहे हैं ऐसा लगता है.
"रौशनी हरिक पल हो रही है"...........क्या इसको ऐसा कर लेना ठीक होगा. "रौशनी आजकल हो रही है"
"घर से रंगत मुग़ल हो रही है".............यहाँ शब्द "मुग़ल" मंगोलियन या अफगानी, के लिए कहा है. यदि सही शब्द "मुग़्ल" है तो फिर यह शेर ही हटा देता हूँ.
पुनः आपकी इस्लाह का इंतज़ार है. सादर.
आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई जी सादर , प्रस्तुति पर उत्साहवर्धन के लिए दिल से आभार. सादर.
बहुत सुन्दर वाह्ह वाह आद० अशोक रक्ताले जी बढ़िया ग़ज़ल लिखी है
आद० समर भाई जी के मशविरे भी स्वागत योग्य हैं तितलियाँ भर रहीं हैं उड़ानें--
तितलियाँ छू रही आसमां को -----कर सकते हैं
आपको बहुत बहुत बधाई
आ0 भाई अशोक जी इस सुंदर गजल के लिए हार्दिक बधाई ।
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