For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

टीस(लघुकथा)राहिला

"अब आप रंज ना करें महात्मा जी!ऐसे भविष्य का भान आपको ही क्या ,किसी को ना था ।हमने तो सुनहरे भारत का सपना संजोया था।अब यूँ रंजीदा होने से क्या हासिल।"
"रंज, बहुत छोटा शब्द है पटेल साहब!हम सब ने अपने वतन की एकता को लाखों के खून से सींचा था ।और आज उस वृक्ष के अस्तित्व के नाम पर सिर्फ यहाँ समृति चिन्ह नजर आ रहा है।"
"आपको क्या लगता है , क्या हमने अपना प्यारा वतन गलत हाथों में सौंप दिया?"भगत जी व्याकुल हो बोले।
"नहीं भगत जी ऐसा नहीं हो सकता ।आप ऐसा ना कहें ।ये न भूलें आप जिनकी बात कर रहे हैं वो उन लाखों देश भक्तों के वंशज हैं।कहीं ना कहीं उस एकता का अंश अवश्य होगा।"आज़ाद बोले
"लेकिन कहाँ?,शाखाएँ तो पहले ही टूट कर अलग हो चुकी थीं।बहुत दिनों तक बस उम्मीदों का ठूँठ दिखाई पड़ता रहा ।अब वो भी नजर नहीं आता।"मांयूसी भरे लहज़े में बापू फिर बोले
"आप मांयूस ना हों।उस वृक्ष की जड़े हो सकता है बाक़ी हों।शायद उनमें अब भी जान हो।चलो खोद कर देखते हैं।"ज्यों ही ये बात अशरफ ने कही समर्थन में बाबा साहब बोले -
"बिल्कुल सही कहा भाई!, हमनें उस समय उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा जब उम्मीद की वजह बाक़ी नहीं थी तो अब क्यों छोड़ें!जड़ में जान बाक़ी होगी तो कभी न कभी पीके फूटेंगे ही ।"
सारे मिल कर चिन्हित जगह पर खुदाई करते हैं ।लेकिन काफी गहराई तक खोदने के बाद भी जडें नहीं मिली।
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 612

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 23, 2016 at 8:25pm

इस लघु कथा के माध्यम से देश की अखंडता एकता पर करारा तीक्ष्ण कटाक्ष किया है सचमुच बहुत गंभीर और विचारणीय मुद्दा है हमे उस पेड़ को अपनी कलम के माध्यम से पुनर्जीवन देना है |आपको बहुत बहुत बधाई प्रिय राहिला जी 

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on August 23, 2016 at 6:55pm

वाह बहुत ही सुन्दर तरीके से ऐतिहासिक  तथ्यों पर आधारित टीस को उभारा गया है ... सचमुच हम जड़ को पहले ही खोद चुके हैं...बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आप बधाई की पात्र है आदरणीया राहिला जी!

Comment by Dr Ashutosh Mishra on August 23, 2016 at 1:05pm
पहले ही जड़ खुद चुकी थी आदरणीय राहिला जी शानदार रचना के लियहर्दिक बधाई सादर
Comment by नयना(आरती)कानिटकर on August 21, 2016 at 1:55pm

 राहिला जी आपने बडी कुशलता से ठीस को उभारा है.सभी अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए जडो को भी नही जोड पाए. सार्थक रचना

Comment by Sushil Sarna on August 21, 2016 at 1:04pm

आदरणीया राहिला जी एक यथार्थ को आपने बड़ी ही रोचकता से चित्रित किया है। स्वार्थ की कुल्हाड़ी ने जड़ों को भी नहीं छोड़ा। अत्यंत संवेदनशील विषय को आपने प्रस्तुत किया है।  हार्दिक बधाई स्वीकार करें। 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
15 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को…"
15 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

अच्छा लगता है गम को तन्हाई मेंमिलना आकर तू हमको तन्हाई में।१।*दीप तले क्यों बैठ गया साथी आकर क्या…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। यह रदीफ कई महीनो से दिमाग…"
yesterday
PHOOL SINGH posted a blog post

यथार्थवाद और जीवन

यथार्थवाद और जीवनवास्तविक होना स्वाभाविक और प्रशंसनीय है, परंतु जरूरत से अधिक वास्तविकता अक्सर…See More
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"शुक्रिया आदरणीय। कसावट हमेशा आवश्यक नहीं। अनावश्यक अथवा दोहराए गए शब्द या भाव या वाक्य या वाक्यांश…"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"परिवार के विघटन  उसके कारणों और परिणामों पर आपकी कलम अच्छी चली है आदरणीया रक्षित सिंह जी…"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन।सुंदर और समसामयिक लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदाब। प्रदत्त विषय को एक दिलचस्प आयाम देते हुए इस उम्दा कथानक और रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीया…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service