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ये तो ख़्वाब हैं ...

ये तो ख़्वाब हैं ...

शब् के हों
या सहर के हों
सुकूं के हों
या कह्र के हों
ये तो ख़्वाब हैं
ये कभी मरते नहीं

ज़ज़्बातों के दिल हैं ये
ये किसी कफ़स में
कैद नहीं होते
ये नवा हैं (नवा=स्वर)
ये हवा हैं
ये ज़ुल्मों की आतिश से
तबाह नहीं होते
ये हर्फ़ हैं
ये नूर हैं
किसी सनाँ के वार से (सनाँ=भाला)
इन्हें अज़ल नहीं आती
पलकों की ज़िंदाँ में (ज़िंदाँ =कारागार)
ये सांस लेते हैं
ज़िस्म फ़ना होते हैं मगर
ख़्वाब तो ख़्वाब हैं
जहां रूह होती है
ये वहां होते हैं
ये किसी रात से
परेशाँ नहीं होते
ये सहर की
ज़ुबाँ नहीं होते
ये रेज़ा रेज़ा
कभी बिखरते नहीं
सच
ये तो ख़्वाब हैं
ये कभी मरते नहीं

सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Sushil Sarna on August 31, 2016 at 2:48pm

सर ये आपकी ज़िंदादिली है। अब स्वास्थ्य कुछ बेहतर हुआ है तो मंच पर उपस्थित हुआ हूँ। आपका हार्दिक आभार सर। 

Comment by Samar kabeer on August 31, 2016 at 2:34pm
इसमें क्षमा मांगने की क्या बात है भाई,आपका सुवास्थ अब केसा है ।
Comment by Sushil Sarna on August 31, 2016 at 1:45pm

आदरणीया प्रतिभा पांडेय जी रचना में निहित भावों को प्रोत्साहित करती आपकी आत्मीय सराहना का दिल से आभार। सर, पिछले १० -१५ दिन से ज्वर से पीड़ित होने के कारण मैं आपका आभार व्यक्त करने में असमर्थ रहा , इसके लिए हृदय से क्षमा चाहता हूँ।

Comment by Sushil Sarna on August 31, 2016 at 1:44pm

आदरणीय डॉ. सुरेन्द्र कुमार वर्मा जी रचना में निहित भावों को प्रोत्साहित करती आपकी आत्मीय सराहना का दिल से आभार। सर, पिछले १० -१५ दिन से ज्वर से पीड़ित होने के कारण मैं आपका आभार व्यक्त करने में असमर्थ रहा , इसके लिए हृदय से क्षमा चाहता हूँ।

Comment by Sushil Sarna on August 31, 2016 at 1:43pm

आदरणीय समर कबीर साहिब रचना में निहित भावों को प्रोत्साहित करती आपकी आत्मीय सराहना का दिल से आभार। सर, पिछले १० -१५ दिन से ज्वर से पीड़ित होने के कारण मैं आपका आभार व्यक्त करने में असमर्थ रहा , इसके लिए हृदय से क्षमा चाहता हूँ।

Comment by pratibha pande on August 23, 2016 at 10:15am

ख़्वाब तो ख़्वाब हैं 
जहां रूह होती है 
ये वहां होते हैं 
ये किसी रात से 
परेशाँ नहीं होते 
ये सहर की 
ज़ुबाँ नहीं होते ...वाह क्या बात आदरणीय ..बहुत खूबसूरत एहसास समेट लाये हैं आप इस रचना में ..हार्दिक बधाई प्रेषित है आपको 

Comment by डा॰ सुरेन्द्र कुमार वर्मा on August 23, 2016 at 7:49am

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति और भाव.....हर पंक्ति पिघलती हुई मन में प्रवेश करती है! बहुत बधाई सरना जी! आपने तो ख़्वाब की हक़ीकत ज़ाहिर कर दी है... 

Comment by Samar kabeer on August 22, 2016 at 4:04pm
जनाब सुशील सरना जी आदाब,20 तारीख़ की पोस्ट की हुई रचना पर दो दिन तक एक भी प्रतिक्रया नहीं,बहुत अफ़सोस का मुक़ाम है ।
हमेशा की तरह एक लफ्ज़ को बुनियाद बनाकर बहुत उम्दा रचना हुई है, दाद के साथ ढेरों बधाई स्वीकार करें ।

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