ये तो ख़्वाब हैं ...
शब् के हों
या सहर के हों
सुकूं के हों
या कह्र के हों
ये तो ख़्वाब हैं
ये कभी मरते नहीं
ज़ज़्बातों के दिल हैं ये
ये किसी कफ़स में
कैद नहीं होते
ये नवा हैं (नवा=स्वर)
ये हवा हैं
ये ज़ुल्मों की आतिश से
तबाह नहीं होते
ये हर्फ़ हैं
ये नूर हैं
किसी सनाँ के वार से (सनाँ=भाला)
इन्हें अज़ल नहीं आती
पलकों की ज़िंदाँ में (ज़िंदाँ =कारागार)
ये सांस लेते हैं
ज़िस्म फ़ना होते हैं मगर
ख़्वाब तो ख़्वाब हैं
जहां रूह होती है
ये वहां होते हैं
ये किसी रात से
परेशाँ नहीं होते
ये सहर की
ज़ुबाँ नहीं होते
ये रेज़ा रेज़ा
कभी बिखरते नहीं
सच
ये तो ख़्वाब हैं
ये कभी मरते नहीं
सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
सर ये आपकी ज़िंदादिली है। अब स्वास्थ्य कुछ बेहतर हुआ है तो मंच पर उपस्थित हुआ हूँ। आपका हार्दिक आभार सर।
आदरणीया प्रतिभा पांडेय जी रचना में निहित भावों को प्रोत्साहित करती आपकी आत्मीय सराहना का दिल से आभार। सर, पिछले १० -१५ दिन से ज्वर से पीड़ित होने के कारण मैं आपका आभार व्यक्त करने में असमर्थ रहा , इसके लिए हृदय से क्षमा चाहता हूँ।
आदरणीय डॉ. सुरेन्द्र कुमार वर्मा जी रचना में निहित भावों को प्रोत्साहित करती आपकी आत्मीय सराहना का दिल से आभार। सर, पिछले १० -१५ दिन से ज्वर से पीड़ित होने के कारण मैं आपका आभार व्यक्त करने में असमर्थ रहा , इसके लिए हृदय से क्षमा चाहता हूँ।
आदरणीय समर कबीर साहिब रचना में निहित भावों को प्रोत्साहित करती आपकी आत्मीय सराहना का दिल से आभार। सर, पिछले १० -१५ दिन से ज्वर से पीड़ित होने के कारण मैं आपका आभार व्यक्त करने में असमर्थ रहा , इसके लिए हृदय से क्षमा चाहता हूँ।
ख़्वाब तो ख़्वाब हैं
जहां रूह होती है
ये वहां होते हैं
ये किसी रात से
परेशाँ नहीं होते
ये सहर की
ज़ुबाँ नहीं होते ...वाह क्या बात आदरणीय ..बहुत खूबसूरत एहसास समेट लाये हैं आप इस रचना में ..हार्दिक बधाई प्रेषित है आपको
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति और भाव.....हर पंक्ति पिघलती हुई मन में प्रवेश करती है! बहुत बधाई सरना जी! आपने तो ख़्वाब की हक़ीकत ज़ाहिर कर दी है...
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