For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रिश्तों के सीनों में ......

रिश्तों के सीनों में ......

कितनी सीलन है
रिश्तों की इन क़बाओं में

सिसकियाँ
अपने दर्द के साथ
बेनूर बियाबाँ में
कहकहों के लिबासों में
रक़्स करती हैं

न जाने
कितने समझौतों के पैबंदों से
सांसें अपने तन को सजाये
जीने की
नाकाम कोशिश करती हैं

ये कैसी लहद है
जहां रिश्ते
ज़िस्म के साथ
ज़मीदोज़ होकर भी
धुंआ धुंआ होती ज़िन्दगी के साथ
अपने ज़िन्दा होने का
अहसास देते हैं
घुटते हैं
फिर भी आवाज़ देते हैं

ए अजल !
ज़िस्म को तू
बेआवाज़ कर देती है
हर दर्द का
इंसाफ़ कर देती है
फिर क्यूँ छोड़ देती है
अपने पीछे
पारा पारा* होते *(पारा पारा =टुकड़ा टुकड़ा )
रिश्तों के सीनों में
ज़ख्मों को
ज़िंदगीभर
रिसने के लिए

सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 538

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on September 6, 2016 at 2:08pm

आदरणीया कांता रॉय जी प्रस्तुति को इतनी आत्मीयता से सराहने के लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया। सृजन आपके इस मान से उपकृत हुआ। 

Comment by kanta roy on September 4, 2016 at 3:01pm
ये कैसी लहद है
जहां रिश्ते
ज़िस्म के साथ
ज़मीदोज़ होकर भी
धुंआ धुंआ होती ज़िन्दगी के साथ
अपने ज़िन्दा होने का
अहसास देते हैं
घुटते हैं
फिर भी आवाज़ देते हैं------ दिल को विह्वल कर गई है आपकी यह कविता आदरणीय सुशील सरना जी। बहुत बहुत बधाई आपको।
Comment by Sushil Sarna on September 4, 2016 at 11:29am

आद. Alka Changa जी  प्रस्तुति पर आपकी आत्मीय सराहना का तहे दिल से शुक्रिया। 

Comment by अलका 'कृष्णांशी' on September 3, 2016 at 4:22pm

सुन्दर कविता

Comment by Sushil Sarna on September 3, 2016 at 3:00pm

आदरणीय Tasdiq Ahmed Khan साहिब सृजन को अपनी आत्मीय प्रशंसा से अलंकृत करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया। 

Comment by Sushil Sarna on September 3, 2016 at 2:58pm

आदरणीय समर कबीर साहिब प्रस्तुति की  अपने शीरीं लफ़्ज़ों से ताज़पोशी करने का दिल की गहराईयों से शुक्रिया। आपका प्रोत्साहन सदा बन्दे को नए सृजन के लिए उत्साहित करता है। हार्दिक हार्दिक आभार। 

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on September 2, 2016 at 9:51pm

मोहतरम सुशील सरना साहिब , दिल की गहराईयों में अपना असर छोड़ती सुन्दर कविता के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं 

Comment by Samar kabeer on September 2, 2016 at 9:17pm
जनाब सुशील सरना साहिब आदाब,बहुत सुंदर कविता हुई है, आपने अपने अहसासात को खूबसूरत अल्फ़ाज़ का जामा पहना दिया है, सोचने पर मजबूर करती है ये कविता और मेरा ऐसा मत है कि जो रचना पाठक को सोचने पर विवश कर दे वो बहतरीन होती है,ढेरों बधाई स्वीकार करें इस शानदार प्रस्तुति पर ।
Comment by Sushil Sarna on September 2, 2016 at 12:16pm

आदरणीय गिरिराज जी भाई साहिब प्रस्तुति पर आपकी आत्मीय सराहना का तहे दिल से शुक्रिया। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 2, 2016 at 9:47am

बहुत खूब ! आदरनीय सुशील भाई बहुत अच्छी लगी आपकी कविता । हार्दिक बधाइयाँ ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। आइए…See More
42 minutes ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमीर जी आभार संज्ञान लेने के लिए आपका सादर"
43 minutes ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय मिथिलेश जी बहुत शुक्रिया आपका हौसला अफ़ज़ाई के लिए सादर"
48 minutes ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमीर जी आभार आपका सादर"
49 minutes ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. अमित जी ग़जल पर आपके पुनरागमन एवम् पुनरावलोकन के लिए कोटिशः धन्यवाद ! सुझावानुसार, मक़ता पुनः…"
1 hour ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय मिथिलेश जी, बहुत धन्यवाद। आप का सुझाव अच्छा है। "
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से मश्कूर हूँ।"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a discussion
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय  दिनेश जी,  बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। सादर।"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमीर बागपतवी जी,  उम्दा ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। सादर।"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय संजय जी,  बेहतरीन ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। मैं हूं बोतल…"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय  जी, बढ़िया ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। गुणिजनों की इस्लाह तो…"
8 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service