तन्हा रह जाता है ....
कल की तरह
ये आज भी गुजर जाएगा
स्मृतियों की कोठरी में
फिर कुछ और पल समेट जाएगा
हर कल के साथ
अपने अस्तित्व की शिला से
अपने अमिट होने का
दम्भ को पुष्ट करता रहेगा
हर कल का सूरज
अस्त्तित्वहीन होकर
किसी कल के गर्भ में
लुप्त हो जाएगा
क्या है जीवन
वो
जो गुजर गया
या वो
जो आज है
या फिर वो
जो आने वाले
काल के गर्भ में
सांसें ले रहा है
हर रोज़
इक मैं जन्म लेता है
हर बीते कल में
इक मैं का इज़ाफ़ा हो जाता है
लम्हा लम्हा
न जाने कब
मैं का अस्तितिव
कल के काल में समा जाता है
आज फिर आगे बढ़ जाता है
कल
अपने अस्तितिव की गठरी लिए
ज़िन्दगी की परछाई बन
तन्हा रह जाता है
सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी प्रस्तुति पर अपना अमूल्य समय और सुझाव देने का तहे दिल से शुक्रिया। आपकी प्रतिक्रिया हर रचना को उत्साहित करती है। आप जैसे गुणीजनों का सानिध्य मेरे लिए सौभाग्य की बात है। सर आपके द्वारा दिया सुझाव सुंदर है लेकिन मैं अपने सृजन में जिस शाब्दिक भाव को समेटने की कोशिश की है उसमें मुझे यथा स्थिति अधिक सही लगती है। आपके अमूल्य सुझाव का हार्दिक आभार।
आदरणीय , जीवन क्रम बयाँ करती आपको चिंतन के लिये हार्दिक बधाई । मै भी व्याकरण का बहुत जानकार नहीं हूँ पर शायद --
फिर कुछ और पल समेट जाएगा -- सिमट जायेगा , या समेटा जायेगा , सही लगेगा ।
अपने अमिट होने का --- होने के दम्भ को पुष्ट करता रहेगा -- देखियेगा , अगर सही लगे तो ?
आदरणीया प्रतिभा जी प्रस्तुति में निहित भावों पर आपकी मुक्त कंठ प्रशंसा से रचना उपकृत हुई। आपके इस स्नेह का दिल से आभार।
मैं का अस्तितिव
कल के काल में समा जाता है
आज फिर आगे बढ़ जाता है
कल
अपने अस्तितिव की गठरी लिए
ज़िन्दगी की परछाई बन
तन्हा रह जाता है.....वाह ...बहुत सुन्दर समय के आने जाने बीत जाने को बहूत सुन्दर शब्दों में बाधा है आपने हार्दिक बधाई प्रेषित है आदरणीय सुशील सरना जी
आदरणीय समर कबीर साहिब प्रस्तुति के भावों को अपनी स्नेहाशीष से जीवन्त करने के लिए हार्दिक आभार।
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