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मृत्यु फिर जीत गयी .....

मृत्यु फिर जीत गयी .......

लम्हे यादों के 

बढ़ती शब् के साथ
पिघलते रहे

मेरे अहसास
लफ़्ज़ों के पैरहन में
गूंगे बन
सिरहाने रखीं किताब में
पिघलते रहे

दीवारों पर
छाई शून्यता की काई में
ये नज़रें
किसी के बहते लावे के साथ
पिघलती रही

मैं और तुम
का अस्तित्व
पिघलकर
एक हुआ

ज़िस्म केज़िंदाँ में
अनबोले लम्स
पिघलते रहे

ज़िस्म मिटे
साये मिटे
अपने मिटे
पराये मिटे
लपटें उठी
फलक झुका
आरम्भ का
इक अंत हुआ
खामोश
हर इक पंथ हुआ
एक दीप
जलता रहा
एक अंत
चलता रहा
मृत्यु
फिर जीत गयी
कहकहा
पिघलता रहा

सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Sushil Sarna on September 6, 2016 at 1:24pm

आदरणीय  गिरिराज भंडारी जी  प्रस्तुति  आपके श्री मुख से प्रशंसा पाकर उपकृत हुई।  आपका हार्दिक आभार। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 6, 2016 at 10:55am

आदरणीय सुशील भाई , बेहतरीन एहसासात की मंज़रकशी की आपने , दिल से बधाइयाँ आपको ।

Comment by Sushil Sarna on September 5, 2016 at 5:02pm

आदरणीया कांता रॉय जी प्रस्तुति के भावों को अपनी स्नेह बरखा से सींचने के लिए हार्दिक आभार। 

Comment by kanta roy on September 4, 2016 at 3:58pm
मेरे अहसास
लफ़्ज़ों के पैरहन में
गूंगे बन
सिरहाने रखीं किताब में
पिघलते रहे...... वाह!इस पिघलने का मर्म बहुत गहरा है। शब्द-शब्द दिल से दिल तक की राह बना कर निकले है। शानदार लेखन हुआ है यहाँ भी आपका आदरणीय सुशील सरना जी। बधाई प्रेषित है।
Comment by Sushil Sarna on September 4, 2016 at 12:59pm


आदरणीया राहिला जी रचना आपके स्नेह वचनों से उपकृत हुई। आपका तहे दिल से शुक्रिया।

Comment by Sushil Sarna on September 4, 2016 at 12:59pm

आदरणीय सतविंदर जी प्रस्तुति के भावों को आत्मीय मान देने का दिल से आभार।

Comment by Rahila on September 4, 2016 at 12:28pm
बहुत शानदार रचना हुयी आदरणीय सर जी !खूब बधाई ।सादर
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on September 4, 2016 at 12:22pm
शानदार अभिव्यक्ति हुई है आदरणीय सुशील सरना जी।हार्दिक बधाई
Comment by Sushil Sarna on September 4, 2016 at 11:22am

आदरणीय बृजेश जी रचना के भावों को आपकी आत्मीय सहमति देती प्रशंसा का दिल से आभार।

Comment by Sushil Sarna on September 4, 2016 at 11:22am

आदरणीय समर कबीर साहिब प्रस्तुति आपकी आत्मीय सराहना से उपकृत हुई। आपके द्वारा इंगित त्रुटि के लिए मैं आपका अत्यंत आभारी हूँ। मेरे ज्ञान चक्षु को नयी दृष्टि से अवगत कराने का हार्दिक आभार। मैं अभी इसे दुरुस्त किये देता हूँ।

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