For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रिश्तों को समझ जाएगी ...

रिश्तों को समझ जाएगी ...


न आवाज़ हुई
न किसी ने कुछ महसूस किया
इक जलजला आया
इक सूखा पत्ता
दरख़्त से गिरा
और बेनूर हुआ
इक आदि का
अंत हुआ
सीने में ही घुट गया
किसी अपने के खोने का दर्द

हरी कोपल हँसी
जीवन के इस खेल का
ए दरख़्त
अफ़सोस कैसा ?

नमनाक नज़रों से
दरख़्त
आरम्भ को देखता रहा
गिरते हुए पत्तों में
रिश्तों का अंत
देखता रहा
वो अंश था मेरा
जो इस तन से
टूट गया
बेबसी की डोर पे
एक रिश्ता रूठ गया

तुम नादान हो
जीवन से अनजान हो
तुम पर बहारें मेहरबान हैं
खिजां जब आती है
मिलन के गर्भ में
वियोग दिखा जाती है
अनन्त राह का
अंत दिखा जाती है
एक पत्ता गिरता है
इक खरोंच आ जाती है
क्या होता है रिश्ता
ये ख़िजां सिखा जाती है
इसलिये ए कोपल
इंतज़ार कर
तू भी इक दिन
मेरा दर्द समझ जाएगी
फिर तुझे
हंसी नहीं आएगी
इक बेबसी होगी
जब तू
रिश्तों को समझ जाएगी

सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 534

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on September 11, 2016 at 4:10pm

आदरणीया Alka Changa  जी आपकी आत्मीय प्रशंसा से रचना उपकृत हुई।  आपका हार्दिक आभार। 

Comment by अलका 'कृष्णांशी' on September 9, 2016 at 9:29pm

क्या होता है रिश्ता ,ये ख़िजां सिखा जाती है। ...........प्रतीकों  के माध्य्म  से गहरा सन्देश ... आदरणीय सुशिल जी  हार्दिक बधाई |

Comment by Sushil Sarna on September 8, 2016 at 3:48pm

आदरणीया कल्पना जी आपकी आत्मीय प्रशंसा से रचना उपकृत हुई।  आपका हार्दिक आभार। 

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on September 7, 2016 at 11:07pm

वाह | आदरणीय सुशिल जी बहुत बढ़िया रचना हुई है यह भी | हार्दिक बधाई |

Comment by Sushil Sarna on September 7, 2016 at 1:38pm

आदरणीय रामबली गुप्ता जी प्रस्तुति  को अपने स्नेह बंधन से उपकृत करने का हार्दिक आभार। 

Comment by रामबली गुप्ता on September 7, 2016 at 5:44am
वाह आद० क्या खूब बिम्ब बांधते हैं आप। बिम्बों एवं प्रतीकों के अनुपम प्रयोग से कविता के भावों को चरम तक पहुंचा देते हैं आप। बेहतरीन अतुकांत दिल से बधाई लीजिये।
Comment by Sushil Sarna on September 5, 2016 at 4:59pm

आदरणीय समर कबीर साहिब प्रस्तुति में निहित भावों की गहनता को अपनी आत्मीय स्वीकृति से अलंकृत करने का तहे दिल से शुक्रिया।  सर इंगित टंकण त्रुटि के तरफ ध्यान आकर्षित करने का शुक्रिया।  मैं इसे अभी एडिट किये देता हूँ।  आपका दिल से आभार। 

Comment by Samar kabeer on September 4, 2016 at 6:02pm
जनाब सुशील सरना जी आदाब,आजकल आप कमाल पर कमाल कर रहे हैं भाई,एक के बाद एक शानदार प्रस्तुति,अल्लाह नज़र से बचाये,आमीन ।
हमेशा की तरह ये कविता भी बहुत ख़ूब लिखी आपने,अच्छा सन्देश दिया है प्रतीकों के माध्यम से,ढेरों बधाई स्वीकार करें इस बहतरीन प्रस्तुति पर ।
15वीं पंक्ति में 'नामनाक'को "नमनाक"कर लीजियेगा कि सही शब्द यही है ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आयोजनों में सम्मिलित न होना और फिर आयोजन की शर्तों के अनुरूप रचनाकर्म कर इसी पटल पर प्रस्तुत किया…"
1 hour ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी विस्तृत समीक्षा का तहे दिल से शुक्रिया । आपके हर बिन्दु से मैं…"
12 hours ago
Admin posted discussions
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"प्रस्तुति के अनुमोदन और उत्साहवर्द्धन के लिए आपका आभार, आदरणीय गिरिराज भाईजी. "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल आपको अच्छी लगी यह मेरे लिए हर्ष का विषय है। स्नेह के लिए…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति,उत्साहवर्धन और स्नेह के लिए आभार। आपका मार्गदर्शन…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ भाई , ' गाली ' जैसी कठिन रदीफ़ को आपने जिस खूबसूरती से निभाया है , काबिले…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील भाई , अच्छे दोहों की रचना की है आपने , हार्दिक बधाई स्वीकार करें "
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service