For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मोह(लघुकथा)राहिला

वह सात दिन लगातार चलते हुए आखिर अपने घर तक पहुँच ही गयी।लेकिन अपने घास पूस के टपरे में कदम रखने से पहले ही उसकी हिम्मत जबाब दे गयी और वह धम्म में जमीन पर ऐसी गिरी की लाख कोशिशों के बाद भी उठ ना सकी।आज ही के दिन उसके घर वालो ने उसे गैरों के हवाले किया था।पूरे रस्ते वह कितना रोई ।उस जैसी कई थी उस गाड़ी में ,श्यामा भी।
"बस कर गौरा!मत रो.., जब अपनों ने ही अपना नहीं समझा तो किस की जान को रो रही हो।"
"तू बता श्यामा!क्या ये अन्याय नहीं है?जिस उम्र में हमें उन की,अपने घर की, सबसे ज्यादा जरूरत है ऐसे समय में हमारे घरवालों ने हमें बेघर कर दिया।"
"अब इन बातों का कोई मतलब नहीं।बस कर,मत सोच इतना ।इससे दुःख और बढ़ेगा ।हम माँ हैं उनकी कहीं गलती से आह ना निकाल जाए नहीं तो.....।"
"नहीं ...,मैं अपना दूध कभी माफ़ ना करूंगी।"इससे पहले श्यामा कुछ और समझाती अचानक गाड़ी का ब्रेक लगा और उनका संतुलन बिगड़ते ,बिगड़ते बचा ।दरअसल कुछ लोगों ने उनकी गाड़ी को घेर कर रोक लिया था। फिर उन लोगों ने उसके ड्राइवर को, उसके दो साथियों को ,गाड़ी से बाहर निकाला ,और बेतहाशा मारा । और गौरा ,श्यामा सहित बाक़ी सब को उनके चंगुल से आज़ाद करा लिया।
"देखा श्यामा भगवान के घर देर है अंधेर नहीँ "कहते साथ, गौरा की बूंढ़ी आँखों में घर वापसी की चमक कौंध गयी।
"तो तू घर वापस जायेगी? लेकिन कैसे? हम बहुत दूर निकल आये री! फिर घर तो घरवालों से होता है ।अब वहां कौन है तेरा सगा?"लेकिन वह ना मानी।आज उसकी पथरायी आँखों में सब चलचित्र सा तैर गया।
तभी किसी ने आवाज दी ।
"अरे बुधुआ !देख जरा ,तेरी गऊ मैया तो वापस लौट आई रे..।कैसी मरणसन्न हालत में द्वारे पड़ी है।"गौरा ,जो अब अपने घर पर थी उसने सुकून की आखरी सांस ली ,लेकिन छोड़ना भूल गयी।
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 907

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अलका 'कृष्णांशी' on September 9, 2016 at 8:58pm

बेहद संवेदनशील लघु कथा के लिये आपको  दिल से बधाई  प्रिय राहिला जी |

Comment by Rahila on September 7, 2016 at 10:54pm

बहुत शुक्रिया आदरणीया अर्चना दीदी!रचना को वक़्त देने और सराहने के लिये ।सादर नमन

Comment by Rahila on September 7, 2016 at 10:53pm

आदरणीया नीता दीदी!आपकी टिप्पणी सदैव मेरा उत्साह दुगना कर देती है।आपने रचना के मर्म को समझा बहुत शुक्रिया ।सादर नमन।

Comment by Rahila on September 7, 2016 at 10:50pm
बहुत, बहुत शुक्रिया आदरणीय तेजवीर सर जी !आपने वक़्त दिया रचना को ,आभार ।सादर नमन
Comment by Archana Tripathi on September 7, 2016 at 1:43am
वाह!प्रतिको का इस्तेमाल कर उम्दा कथा लिखी हैं आपने
Comment by Nita Kasar on September 6, 2016 at 7:30pm
कितनी बड़ी बड़ी बातें कितनी सरलता से कह जाती है आप ।सच में ये मोह कहाँ कभी छूटता है ।उसने सुकून की आख़िरी साँस ली ,लेकिन छोड़ना भूल गई ।बधाई आपको आद०राहिला जी ।
Comment by TEJ VEER SINGH on September 6, 2016 at 1:21pm

हार्दिक बधाई आदरणीय राहिला जी।बेहतरीन और मार्मिक प्रस्तुति ।

Comment by Rahila on September 6, 2016 at 12:51pm
बहुत, बहुत आभार आदरणीय गिरिराज सर जी!आपने रचना को समय दिया, मेरा सौभाग्य ।सादर नमन
Comment by Rahila on September 6, 2016 at 12:49pm
आदरणीया राजेश दीदी !हौसला अफ़जाई करना तो कोई आपसे सीखे ।मेरी साधारण सी कोशिश को आपकी टिप्पणी ने उत्कृष्ट बना दिया ।बहुत, बहुत आभार,शुक्रिया।सादर नमन
Comment by Rahila on September 6, 2016 at 12:47pm
आदरणीया कांता दीदी! आपकी टिप्पणी की सदैव प्रतीक्षा रहती है।आपने रचना को समय दिया और सराहा,बहुत शुक्रिया ।सादर नमन

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
36 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को…"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

अच्छा लगता है गम को तन्हाई मेंमिलना आकर तू हमको तन्हाई में।१।*दीप तले क्यों बैठ गया साथी आकर क्या…See More
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। यह रदीफ कई महीनो से दिमाग…"
Tuesday
PHOOL SINGH posted a blog post

यथार्थवाद और जीवन

यथार्थवाद और जीवनवास्तविक होना स्वाभाविक और प्रशंसनीय है, परंतु जरूरत से अधिक वास्तविकता अक्सर…See More
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"शुक्रिया आदरणीय। कसावट हमेशा आवश्यक नहीं। अनावश्यक अथवा दोहराए गए शब्द या भाव या वाक्य या वाक्यांश…"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"परिवार के विघटन  उसके कारणों और परिणामों पर आपकी कलम अच्छी चली है आदरणीया रक्षित सिंह जी…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service