"गणपति बप्पा मोरिया" की आवाज़ अबीर गुलाल और कानफाड़ू संगीत के बरसात के बीच गूंज रही थी, सड़क को निकलने वाले जुलुस ने पूरी तरह से जाम कर दिया था। किसी तरह बचते बचाते वो निकल रही थी कि एक गेंदे का फूल आकर छाती पर लगा और नज़र अनायास उस ट्रक की ओर चली गयी। भक्तों की भीड़ में दिख ही गया लखना, बज रहे संगीत पर झूम रहा था, या नशे में, समझना मुश्किल था। घृणा से एक जलती निगाह उसने उसकी ओर फेंकी और जल्दी जल्दी आगे बढ़ने लगी। पता नहीं मेडिकल स्टोर भी खुला होगा या नहीं इसी चिंता में वो परेशान थी कि लखना भी मिल गया।
पूरी रात में बिना रुके बजने वाले संगीत ने उसके पिता के मर्ज को बढ़ा दिया था। अब किसी तरह दवा लाकर उनको दे सके तो राहत मिले इसीलिए इस माहौल में भी वो घर से निकल पड़ी। पिछले कुछ सालों से उसके घर से सटे हुए प्लाट में ही सभी धार्मिक कार्यक्रम होने लगे थे। दरअसल वो प्लाट जिसका था वो विदेश में रहता था और उसने इन्वेस्टमेंट के हिसाब से उसे खरीद लिया था। लेकिन जब कई सालों तक उसने प्लाट पर कुछ नहीं बनवाया तो कुछ लोगों को वहां कुछ और सूझ गया और रातों रात वहां एक छोटा सा शिवलिंग निकल गया। अब वो जगह एक तरह से उसके मालिक के हाथ निकल गयी और एक मुकदमा अपनी मौत मरने के लिए कचहरी में दाखिल हो गया था।
अब चाहे गणेश पूजा हो, दुर्गा पूजा हो या कुछ और, सारे पंडाल वहीं बनते थे। और लखना और उसकी टीम के लोग चंदा मांगने तो ऐसे आते थे जैसे कि उसने ही कुछ उधार लिया हो पूजा कमिटी से। एक बार तो जब उसके पिता ने ऐतराज किया तो इसी लखना ने एक आंख दबाते हुए कहा थे कि जाने दो, अपने होने वाले रिश्तेदार से चंदा नहीं लेते हैं। और फिर उसने पिता को साफ़ शब्दों में बोल दिया था कि बिना हुज्जत इनको चंदा दे दिया करें। पंडाल बनने में कई दिन लगते थे और लखना किसी न किसी बहाने उसके घर आ ही जाता था और फिर उसकी गन्दी नज़र। पता नहीं कितनी बार उसने पंडाल में प्रार्थना की होगी कि इस लखना की ऑंखें न रहें लेकिन उस जैसे की प्रार्थना तो मानव भी नहीं सुनते तो कोई और क्या सुने! अक्सर शाम को निकलते समय लखना नशे में धुत्त उसी पंडाल के आस पास मिल जाता और फिर वो कई मौत मरती हुई जाती आती।
मोहल्ले में बहुत से लोग समझते भी थे लेकिन एक तो धर्म की बात और दूसरे उन लफंगों के मुह कौन लगे, आखिर सब लड़कियों के बाप थे। अब ऐसे में उनको बर्दास्त कर लेने के सिवा कोई चारा भी नहीं था। पिता से तो भूल कर भी कुछ नहीं कहती थी, उनका ब्लड प्रेसर वैसे ही हाई रहता था, अगर कुछ हो गया तो। इसी तरह सभी त्यौहार बीत रहे थे, रात रात भर बजते बेहद तेज संगीत और शोर उसके पिता को और बीमार बना देते थे।
लगभग भागते हुए वो दुकान पहुंची और भाग्य से खुली हुई थी। पिता की दवा लेकर जैसे ही वो मुड़ने को हुई, उसकी नज़र शेल्फ में रखे डिस्पोसेबल सिरिंज पर पड़ी। उसने एक सिरिंज भी लिया और जल्दी जल्दी वापस चल दी। आज पहली बार वो उस जुलूस का हिस्सा बनना चाहती थी और जैसे ही उसकी नज़र उस ट्रक पर पड़ी जिसमें लखना सवार था, उसने लखना को उतर आने का इशारा किया। लखना उतरा और दोनों मुट्ठी में गुलाल लेकर उसकी तरफ बढ़ा, उसने भी अपनी मुट्ठी मजबूत कर ली। नशे में झूमता हुआ लखना उसके पास पहुंचा और उसने दोनों हाथों में लिया गुलाल उसकी ओर उड़ा दिया। चारो तरफ बज रहे शोर और उड़ते हुए गुलाल में भी उसका निशाना सही बैठा और लखना अपनी आंख पर हाथ रखकर भागा। वो भी जल्दी जल्दी घर की तरफ भागी, पिता को जल्दी से दवा देनी थी। चारो तरफ गणपति बप्पा की जय जयकार हो रही थी, लोग नाच गा रहे थे और लखना अपनी आँखों से बहते खून को रोकने की कोशिश करता हुआ गिरा पड़ा था। आज पहली बार उसे गूंजता हुआ जयकारा बेहद अच्छा लग रहा था और उसने भी ऊँची आवाज़ में कहा "अगली बरस तू जल्दी आ"।
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online