माता तेरा बेटा वापस, ओढ़ तिरंगा आया था।
मातृ भूमि से मैंने अपना, वादा खूब निभाया था।
बरसो पहले घर में मेरी, गूंजी जब किलकारी थी।
माता और पिता ने अपनी हर तकलीफ बिसारी थी
पढ़ लिख कर मुझको भी घर का,बनना एक सहारा था
इकलौता बेटा था सबकी मैं आँखों का तारा था
केसरिया बाना पहना कर ,भेज दिया था सीमा पे
देश प्रेम का जज़्बा देकर ,इक फौलाद बनाया था
सोते सोते प्राण गँवाना, मुझे नहीं भाया यारो
कायर दुश्मन की हरकत पर ,क्रोध बहुत आया यारो
शुद्ध रक्त का जाया दुश्मन, वहां नहीं पैदा होता
खुली चुनौती देता हूँ मैं, उसको धूल चटा देता
थूक रहा हूँ बुजदिल गीदड़, तेरे हर मंसूबे पे
घने अँधेरे में छिपकर तू,मुझे डराने आया था
कितनी माताओं की गोदी,और उजाड़ेगी दिल्ली
कब तक बैठक में बातों में, वक्त बिगाड़ेगी दिल्ली
समय आ गया आर पार का, दे दो छूट जवानों को
घर में घुस कर खींच निकालें जेहादी शैतानो को
तनिक नहीं अफ़सोस वतन पर मुझको जान गवाने का
प्रश्न शहीदों का है तुमसे क्यूँ ब्रह्मोस बनाया था
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय सौरभ भाई जी प्रणाम आपकी उत्साह प्रदान करती टिप्पणी से अभिभूत है हम। गीत को आपकी सकारात्मक सराहना से निश्चित ही उत्साह बढ़ा है और बेहतर कहने के लिये दायित्व भी । प्रयास यही रहेगा कि आप से आगे भी इसी प्रकार शाबासी मिले । हॉं त्रुटियों को सुधारने के लिये भी देख रहे है इसे । विलंब से आप सब की टिप्पणियों पर आने के लिये क्षमा ।
आदरणीया प्रतिभा जी आपको गीत पसंद आया प्रयास सार्थक लग रहा है बहुत बहुत धन्यवाद । सादर
आदरणीय श्याम नारायण जी गीत पर आपकी उत्साह वर्द्धक टिप्पणी के लिये धन्यवाद
आदरणीय सुरेश जी कल्याण गीत पसंद आया आपको बहुत बहुत धन्यवाद । प्रयास सार्थक हुआ ।
समय आ गया आर पार का, दे दो छूट जवानों को
घर में घुस कर खींच निकालें जेहादी शैतानो को....बिल्कुल....पानी सर के ऊपर से निकल गया अब
क्या खूब जोश से भरी रचना है ...हार्दिक बधाई प्रेषित करती हूँ इस रचना पर आपको आदरणीय रवि शुक्ल जी
भाई रामबली गुप्ता जी,
//'होता' और 'देता' में तुकांतता दोषपूर्ण है। //
इस एक पंक्ति के अलावा आपके सुझाव किसी छान्दसिक गीत की प्रकृति से मेल खाते हुए नही हैं. छन्दबद्ध रचना और छान्दसिक गीत रचना का भेद समझना आवश्यक है. वैसे, कहना तो आपसे बहुत कुछ चाहता हूँ लेकिन न समय उचित, है न आपकी उत्कंठा सम्यक है.
शुभेच्छाएँ
आदरणीय रवि शुक्ल जी, आपने चकित तो किया ही है, अभिभूत भी कर दिया है. बारम्बार बधाइयाँ
इस गीत में कथ्यगत भाव है, साथ ही, छान्दसिक अनुभाव भी है. हृदयतल से इस उत्तम प्रयास के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ
शुभेच्छाएँ
मोहतरम जनाब रवि साहिब , बहुत ही सुन्दर ताटंक छंद गीत लिखा है आपने , मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ----
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