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गजल(कर गुजरते कुछ.......)

छद्मवेशी देशभक्त दोस्तों को समर्पित)
2122 2122 2122 2
***
कर गुजरते कुछ अभी तैयार बैठे हैं
देख अपनों की दशा लाचार बैठे हैं।1

दुश्मनों की नस दबाते, शोर मच जाता,
इश्क के तो ढ़ेर सब बीमार बैठे है।2

दोस्त वह खंजर चलाता आँख बेपानी,
भर रहे हामी मुए इस पार बैठे हैं।3

जीतते आये दिलों पे राज भी करते
भेदियों की भीड़ है मन मार बैठे हैं।4

फूल कितने भी खिलाये चुभ रहे काँटे
बागवाँ पहले यहाँ सब हार बैठे हैं।5

रोशनी की कुछ मशालें हाथ में रखना
रास्तों पर आजकल बटमार बैठे हैं।6

वेशभूषा, बात का मतलब हुआ मुश्किल
भेड़ बनकर भेड़िये खूंखार बैठे हैं।7

मौलिक व अप्रकाशित@मनन

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Comment by Ashok Kumar Raktale on October 1, 2016 at 1:35pm

वेशभूषा, बात का मतलब हुआ मुश्किल
भेड़ बनकर भेड़िये खूंखार बैठे हैं।7.........वाह !

आदरणीय मनन कुमार सिंह जी सादर, खूबसूरत गजल हुई है. बहुत मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं. सादर.

Comment by Manan Kumar singh on September 28, 2016 at 8:28pm
आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय सुशील सरना जी।
Comment by Sushil Sarna on September 28, 2016 at 2:02pm

कर गुजरते कुछ अभी तैयार बैठे हैं
देख अपनों की दशा लाचार बैठे हैं।1

दुश्मनों की नस दबाते, शोर मच जाता,
इश्क के तो ढ़ेर सब बीमार बैठे है।2

वाह आदरणीय मनन जी बहुत ही सुंदर अशआर कहे हैं आपने .... इस यथार्थ वादी ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई सर।

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