क्यों करते
खुदकी वाह वाही
होती उसकी
फिर बुराई
माना बहुत कुछ
जान गये हो
खुद को भी
पहचान गये हो
न इतना
गुमान करो
खुद का खुद
सम्मान हरो
अच्छे हो
जानो खुदको
इन्सां हो
मानो खुदको ।
चलो भले
अपनी ही चाल
न खींचों
दूसरों की खाल
धीरे धीरे
चलना है
दौड़ना नहीं
बस चलना है ।
जय हो जय हो
का नारा छोड़ो
स्व तारीफ़ से
नाता तोडो ।
एक दिन
पेड़ क्या
बन जाओगे
ज़मीन पर
से क्या
उठ जाओगे
आसमां का
सपना देखो
आईने में
चेहरा देखो ।
इंसान हो
न भूलो कभी
अच्छाई से
न भागो कभी ।
आये हो
वैसे ही जाना होगा
अपना हिसाब
सब यहीं चुकाना होगा ।
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
धन्यवाद आदरणीय सुरेश कुमार जी |
धन्यवाद् आदरणीय गिरिराज सर जी |
आदरणीया कल्पना जी , अच्छी कविता रची है आपने , हार्दिक बधाई आपको ।
आ. कल्पना दीदी अच्छी रचना हुई है बहुत बहुत बधाई आपको
सांसारिक सत्य की ओर इशारा करती आपकी कविता की अभिव्यक्ति बहुत सुन्दर है |आ कल्पना जी
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online