छम छम करती हुई
आयी जब वो छत पर
चाँद भी जैसे ठहर सा गया
यौवन उसका देखकर
श्वेत वस्त्रों में लिपटी हुई
कुछ शरमाई कुछ अलसायी
देख रही थी बादलों को
लगा मानो कह रही हो
बुला दो मेरे प्रियतम को
देख उसको बादल भी बरस पड़े
पीड़ा थी जुदाई की
या थी प्रीत की जीत
चाँद भी जा चूका था
बादल भी बरस गये
पिया के दरस को
नयन भी तरस गये |
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
धन्यवाद आदरणीय रवि शुक्ल जी |
आदरणीया कल्पना जी बहुत बहुत बधई इस कविता के लिये ।
मार्मिक कविता हुई है आ. कल्पना दीदी बहुत बहुत बधाई इस रचना के लिए
बहुत बहुत शुक्रिया जनाब तस्दीक साहब | आपका रचना पसंद आई सार्थक हुआ यह प्रयास मेरा |
मोहतरमा कल्पना साहिबा , दीदार और इंतज़ार के मंज़र को दर्शाती सुन्दर कविता के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
धन्यवाद आदरणीय बासुदेव जी |
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