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ग़ज़ल-लिए दर्द दिल में पुराने चला हूँ-रामबली गुप्ता

वह्र-122 122 122 122

लिए दर्द दिल में पुराने चला हूँ
गमे इश्क के गीत गाने चला हूँ

जहाँ पल खुशी के बिताये थे तुम सँग
वहीं आज आँसू बहाने चला हूँ

बयाँ हाले' दिल भी करूँ क्या किसी से
मैं' सब खुद से' ही अब छिपाने चला हूँ

थी ये जिंदगी आप ही की ऐ' साहिब
उसे आप ही पे लुटाने चला हूँ

मुबारक तुम्हें चाँद सूरज सितारे
अँधेरों को' मैं आजमाने चला हूँ

खुली आँख का ख्वाब था प्यार तेरा
यकीं आज दिल को दिलाने चला हूँ

छुपा कर गमों को सरे बज़्म यारों
है' मुश्किल मगर मुस्कुराने चला हूँ

लिए आँसुओं का छलकता हुआ जाम
'बली' जश्न गम का मनाने चला हूँ

रचना-रामबली गुप्ता
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on October 22, 2016 at 10:51pm

आदरणीय रामबली गुप्ता साहेब ...............बहुत खूब !!! बधाई  आपको |

Comment by रामबली गुप्ता on October 21, 2016 at 9:28pm
बहुत बहुत धन्यवाद आद0 समर भाई साहब
Comment by Samar kabeer on October 21, 2016 at 2:43pm
मुकेश के गाने और आपके शैर के भाव अलग हैं इसलिए बदलने की ज़रूरत नहीं ,पुनः बधाई इस सृजन के लिये ।
Comment by रामबली गुप्ता on October 21, 2016 at 2:33pm
आद0 समर भाई साहब आपका हृदय से आभार। ग़ज़ल आपको अच्छी लगी मेरा लिखना सार्थक हुआ। टाइप करते समय कुछ शब्द अधिक टाइप हो गया था। संशोधन कर चुका हूँ। निम्नलिखित पर आपके सुझाव की अपेक्षा है-
मुकेश के गाने का शेर इस प्रकार है-

घटाओं तुम्हें साथ देना पड़ेगा,
मैं फिर आज आँसू बहाने चला हूँ।

मैंने जो शेर लिखा है वो इस प्रकार है-

जहाँ पल खुशी के बिताये थे तुझ सँग,
वहीं आज आँसू बहाने चला हूँ।

क्या मुकेश के गए गाने के शेर और मेरे शेर को समान माना जायेगा? यदि ऐसा होगा तो मुझे अपना ये शेर बदलना पड़ेगा। कृपया मार्गदर्शन करें।सादर
Comment by Samar kabeer on October 20, 2016 at 8:59pm
जनाब रामबली गुप्ता जी आदाब,उम्दा ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
दूसरे शैर का सानी मिसरा'वहीं आज आँसू बहाने चला हूँ'ये मिसरा तो मुकेश के गाये हुए गीत का है शायद ?
तीसरे शैर के सानी मिसरे में 'कुछ'शब्द ज़ियादा होने से लय बाधित हो रही है,देखिएगा ।

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