वागीश्वरी सवैया [सूत्र- 122×7+12 ; यगण x7+लगा]
करो नित्य ही कृत्य अच्छे जहां में सखे! बोल मीठे सभी से कहो।।
दिलों से दिलों का करो मेल ऐसा, न हो भेद कोई न दुर्भाव हो।।
बनो जिंदगी में उजाला सभी की, सभी सौख्य पाएं उदासी न हो।।
रखो मान-सम्मान माँ भारती का, सदा राष्ट्र की भावना में बहो।।
मत्तगयन्द सवैया [सूत्र-211×7+22 ; भगणx7+गागा]
यौवन ज्यों मकरन्द भरा घट, और सुवासित कंचन काया।
भौंह कमान कटार बने दृग, केश घने सम नीरद-छाया।।
देख छटा मुख की अति सुंदर, पूनम का रजनीश लजाया।
ओष्ठ खिली कलियाँ अति कोमल, देख हिया अलि का हरसाया।।
रचना-रामबली गुप्ता
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय समर साहब, मैं आपका मुरीद यों ही नहीं हो गया हूँ.. :-))
आपकी उत्सुकता और लगन मुझे बरबस ओबीओ का वह दौर याद दिलाती है, जब ओबीओ के सक्रिय सदस्य विधा विशेष में ’ग्रेजुएट’ होने का ’भ्रम’ पाले नहीं दिखते थे. उस दौर का ही परिणाम आज ओबीओ के वरिष्ठ सदस्य के रूप में मंच पर हैं.
ख़ैर.. बहता पानी निर्मला यदि कहा जाता है तो, साहब, समय भी तो बहता हुआ ही होता है. इसकी भी अपनी कलाएँ और अपना विशिष्ट प्रवाह हुआ करता है.
आदरणीय, ऐसा नहीं है कि सभी छन्द चार पंक्तियों के होते हैं. दोहा, सोरठा, चौपाई, चौपई, उल्लाला आदि छन्द दो पदों (पंक्तियों) के होते हैं. वहीं रोला, सवैया, घनाक्षरी और अनेकानेक छन्द चार पदों (पंक्तियों) के होते हैं. जबकि कुण्डलिया, छप्पय आदि छः पंक्तियों के छन्द हैं.
होने को तो छन्द तीन पंक्तियों और आठ पंक्तियों के भी हुए हैं. सोनेट जैसा छन्द जो कि इटली से ब्रिटेन होता हुआ भारत आया है, वह बारह और चौदह पंक्तियों का होता है. लेकिन ये सभी हिन्दी भाषा में अपनी बहुत ज़ोरदार उपस्थिति नहीं बना पाये हैं. सोनेट पर काम तो हुआ है, लेकिन मुख्य रूप से नाम त्रिलोचन, यानी त्रिलोचन शास्त्री, का ही आता है.
इसी के अनुसार सभी छन्दों की तुकान्तता भी अलग-अलग हुआ करती है. यह बात विशेष रूप से चार पंक्तियो और छः पंक्तियों के छन्दों के लिए कह रहा हूँ.
विश्वास है, आदरणीय, मैं आपकी जिज्ञासा के मर्म को स्पर्श कर पाया.
सादर
जनाब सौरभ पाण्डेय साहिब,कोशिश करके देखते हैं आपके बताये अनुसार,समूह में लेख भी अवश्य पढेंगे,आपका बहुत बहुत धन्यवाद इस मार्गदर्शन के लिये, बस इतना और बता दीजिये की हर छन्द चार पंक्तियों का ही होगा,या उसे बढ़ाया भी जा सकता है ?
बहुत ही सुन्दर , बधाई इस प्रस्तुति के लिए आदरणीय |
आदरणीय सुधीजनो ! मेरी बातों का महत्व समझते हुए भाई रामबली ने प्रस्तुत हुई सवैयों के सूत्र डाल दिये हैं. आप तदनुरूप पंक्तियों के विन्यास को समझने का प्रयास करें.
यथा, 122 (यगण) x7+लघुगुरु (लगा) का अर्थ है, लघु-गुरु-गुरु की सात आवृति के बाद एक लघु और गुरु के विन्यास पर हर पंक्ति सधी होगी. यही वागीश्वरी सवैया का विन्यास है.
इसी तरह 211 (भगण) x 7+ गुरु-गुरु (गागा) का अर्थ है, गुरु-लघु-लघु की सात आवृति के बाद दो गुरुओं का होना. अर्थात इसी विन्यास पर सारी पंक्तियाँ सधी होंगी. यही मत्तगयंद सवैया का विन्यास है.
एक आग्रह सुधीजनों से -
छान्दसिक रचनाएँ कोई इतनी क्लिष्ट नहीं होतीं कि उनको समझने के लिए कोई विशेष मनस अपनाना हो. यगण (122, लघु-गुरु-गुरु) या भगण (211, (लघु-गुरु-गुरु) की आवृति वाले विन्यासों पर हम ग़ज़ल या अन्यान्य विधाओं में रचनाकर्म तो करते ही हैं.
सर्वोपरि, इन सवैयों का भारतीय छन्द विधान समूह में तफ़्सील से विधान लिखा हुआ है. हम आप सार्थक जानकारी के लिए क्या उन्हें नहीं देख सकते ? क्या इतनी मेहनत नहीं कर सकते ? अवश्य कर सकते हैं, बशर्ते, हम विधाओं के प्रति एकपक्षीय न हो जायें.
सवैया वर्णिक छन्द हैं जिनके गणों की आवृति नियत होती है, ग़ज़लों की तरह. यानी, रचनाकर्मियों को अपनी ओर से पंक्तियों की मात्राओं के अनुसार विन्यास नहीं साधना होता. जैसा कि दोहा छन्द जैसे मात्रिक छन्दों में करना होता है. जब हम दोहा छन्द पर सफल अभ्यास कर सकते हैं ्, तो वर्णिक छन्दों पर अभ्यास तो अत्यंत सरल है.
सादर
सुंदर भावों की प्रस्तुति | छंद के बारे में अधिक जानकारी नहीं है | सादर बधाई आपको
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