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उम्मीद की किरणें (लघुकथा) /शेख़ शहज़ाद उस्मानी

"घबराओ नहीं, हम तुम्हारे मन की बात जानते हैं, इसकी परवाह हम भी करते हैं!" उसने बड़ी सावधानी से अपना काम जारी रखते हुए बालक को तसल्ली दी। अनपढ़ की समझदारी की बात पर आश्चर्य करते हुए बालक पुनः झूले पर बैठा अपने मन से बातें करने लगा। सात-आठ माह में विकास के अद्भुत अनुभव पर ख़ुश होता बालक पुनः नियत समय पर सेवारत हो गया। हंसिया और खुरपी हाथ में लिए चपरासी अब कुछ दूर से बालक को निहार रहा था। नीम के पौधे को जलदान करते हुए बालक ख़ुशी हासिल कर रहा था। चपरासी अब साहब और मेम साहब के दफ़्तर से लौटने का इंतज़ार कर रहा था।

"चाचा, अब तो यह पेड़ बन जायेगा न!" बालक ने चमकती आँखों के साथ चपरासी से कहा।

चपरासी ने चुपचाप उसे स्नेह से निहारते हुए उसके सिर पर हाथ रख दिया।

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 29, 2016 at 4:25pm
रचना पर समय देकर प्रोत्साहित करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया मोहतरमा राहिला साहिबा।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 29, 2016 at 4:38am
स्नेहिल हौसला अफ़ज़ाई हेतु तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया मोहतरम जनाब समर कबीर साहब।
Comment by Rahila on October 28, 2016 at 7:23pm
बहुत बढ़िया ,खूब लिखा आदरणीय उस्मानी जी !आपने इस विषय पर।बहुत बधाई।सादर
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 28, 2016 at 8:32am
मेरी इस ब्लोग पोस्ट पर उपस्थित हो कर हौसला अफ़ज़ाई हेतु तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया मोहतरम जनाब सुशील सरना साहब। धन तेरस और दीपावली पर्व पर आप सभी को बहुत बहुत हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ।
Comment by Samar kabeer on October 26, 2016 at 3:14pm
जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,बहुत ही सबक़ आमोज़ लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Sushil Sarna on October 26, 2016 at 12:29pm

आदरणीय सुंदर प्रेरणादायक  लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई। 

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