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जनाब अनीस शैख़ साहिब आदाब,आपको छन्द पसंद आये,जानकर प्रसन्नता हुई,सराहना के लिए आपको धन्यवाद कहता हूँ ।
जनाब समीर कबीर साहब आपकी ग़ज़लें पढ़ते पढ़ते इस छंद में पहुँच गया इसको पढ़ने के बाद मुझे राहत इंदौरी साहब का शेर याद आ रहा ,"
फ़क़ीर ,शाह , कलंदर, इमाम क्या क्या है
तुझे पता नहीं तेरा ग़ुलाम क्या क्या है |
क्या कहूँ मैं इन सब के लिए तो एक ज़िंदगी कम पड़ जाये पता नहीं कैसे कर लेते हैं आप, बहुत खूब सर
वाह्ह्ह्हह वाह्ह्ह्ह आद० समर भाई जी ,वागीश्वरी सवैया ..शिल्प पर इतना सधा हुआ प्रवाह की देखते ही बनता है कहीं से नहीं लगता की आप प्रयास कर रहे हैं गजलों में तो आप माहिर हैं छंदों में भी एक दिन सिद्धस्थ होकर निकलेंगे .मेरी दिल से दुआएँ और मुबारकबाद आपको .
आदरणीय समर कबीर जी, आपकी प्रस्तुतियां पढ़ कर आनन्द आया ... गहरे भाव, उत्तम संदेश ... जीवन में इनका प्रयोग कितना उपयोगी है ! हार्दिक बधाई।
आदरणीय समर कबीर साहब सादर नमस्कार, आपको गजलों की महारत के पश्चात छंदों पर कार्य करते देखकर प्रसन्नता हुई है. पहले मात्रिक में दोहा और अब वार्णिक छंद में सवैया.
दोनों ही छंद आपने प्रथम बार में ही उत्तम रचे हैं. कहीं भी गण दोष नहीं दिख रहा है यह आपके लेखन में सजगता को दर्शा रहा है. बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें. सादर.
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