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ग़ज़ल - याद शब् भर कई दफ़ा आई

2122 1212 22
कोई खुशबू भरी हवा आई ।
याद शब् भर कई दफ़ा आई ।।

दर्द दिल का नही मिटा पाया।
जब से हिस्से में बेवफा आई ।।

कौन कहता है नासमझ है वो ।
दुश्मनी वक्त पर निभा आई ।।

उम्र गुजरी जिसे मनाने में ।
आज लेकर वही हया आई ।।

कुछ तो नीयत में फासले होंगे ।
वो अदब में नजर झुका आई ।।

चन्द लम्हे थे जिंदगी खातिर ।
बेरहम हो के फिर क़ज़ा आई ।।

है अलग बात भूल जाने की ।
काम उसके मेरी दुआ आई ।।

ये मुसीबत भी क्या बुरी शय है ।
जब भी आई ख़फ़ा खफा आई ।।

रूठ जाने की जिद के क्या कहने ।
मुद्दतो बाद फिर रज़ा आई ।।

खूब चर्चा है शहर में देखो ।
क्यूँ रकीबों से दिल लगा आई ।।

उस की किस्मत बुलन्द थी यारों ।
उसकी महफ़िल में दिलरुबा आई ।।

लोग हैरान हो गए तब से ।
आग पानी में जब लगा आई ।।

थी अदा इंतकाम के काबिल ।
हौसला फिर कहीं डुबा आई ।।

--नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित

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Comment by Mahendra Kumar on November 7, 2016 at 9:38am
आदरणीय नवीन जी, बहुत उम्दा ग़ज़ल कही है आपने। मेरी तरफ से ढेर सारी बधाई।
Comment by Samar kabeer on November 6, 2016 at 5:32pm
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।

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