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तेरे जलवे से वाकिफ हूँ तेरा दीदार करता हूँ ।
मुहब्बत मैं तुझे सज़दा यहां सौ बार करता हूँ ।।
नज़र बहकी फिजाओं में अदाएं भी हुई कमसिन ।
बड़ी मशहूर हस्ती हो नया इकरार करता हूँ ।।
न जाने कौन सी मिट्टी खुदा ने फिर तराशा है ।
है कारीगर बड़ा बेहतर बहुत ऐतबार करता हूँ ।।
नई आबो हवा में वो कली खिल जायेगी यारों ।
गुलाबी रोशनाई से लिखा रुख़सार करता हूँ ।।
यहां बेदर्द ख्वाहिश है वहां कातिल निगाहें हैं ।
बड़ी शिद्दत से मैं दिल में दफ़न हर खार करता हूँ ।।
जमाने में रकीबों ने बड़ी कीमत लगा दी है ।
है नीलामी का ये मंजर नया व्यापार करता हूँ ।।
कोई तश्वीर है धुँधली , है जिंदाबाद ये कोशिश ।
अधूरे अक्स को लेकर उसे साकार करता हूँ ।।
तमन्ना रूठ मत जाए तेरे कूचे में दाखिल है ।
शिक़ायत वक्त करता है उसे बेकार करता हूँ ।।
बहुत नजदीक से गुज़री है तेरे हुस्न की खुशबू ।
हवाओं की अदावत से ज़िगर लाचार करता हूँ ।।
--- नवीन मणि त्रिपाठी
अप्रकाशित मौलिक
Comment
आ० राजेश कुमारी जी से सहमत
बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है आद० नवीन मणि जी दिल से बधाई लीजिये आद० समर भाई जी की बात पर गौर करें थोड़े बदलाव के बाद जिंदाबाद ग़ज़ल होकर निकलेगी वो आपके लिए मुश्किल काम नहीं है
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