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आदरणीय शेख़ शहज़ाद उस्मानी जी, एक बहुत ही भावपूर्ण लघुकथा रची है ऐसे दृश्य कई बार हमारे सामने घटते हैं किसी मजबूर को देखकर अक्सर कोई न कोई मदद के लिए आगे आ ही जाता है।
आज के हालत पर अच्छी लघु कथा लिखी है लोगों में संवेदना जगाती अच्छी प्रस्तुति बहुत बहुत बधाई आद० उस्मानी जी
//सही कहा तुमने, न संभाल सकते हो, न ही इन लोगों को समझ सकते हो! लेकिन उनके ये नोट अगर इनकी दास्तां बयान करते हैं, तो हमारी पोल भी तो खोलते हैं!//" पन्नी में रखे फटे नोटों का चलन हमारे यहाँ भी बहुत है ,अक्सर लोग सब्जी बेचने वाली महिलाओं को अपने फटे नोट दे देते हैं .. बहुत अच्छी लगी आपकी ये रचना ...हार्दिक बधाई आपको आदरणीय उस्मानी जी
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