For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गाँव में चोरों का प्रकोप बढ़ रहा था। लोग परेशान थे।आये दिन किसी-न-किसी घर में चोरी हो जा रही थी। ग्राम प्रधान ने नई योजना बनाई। पूरा गाँव स्थिति से निपटने को तैयार था।रात चढ़े कालू सेठ के घर चोर पहुँचे।घर का मौन उन्हें ज्यादा मुखर लगा,कालू सेठ का चिर परिचित खर्राटा जो सुनने को नहीं मिला। वे भागने लगे।पूरा गाँव होहकारा देकर पीछे पड़ गया। पर चोर तो चोर थे।निकल गए दूर तक,चोरोंवाले गाँव की तरफ।प्रधान जी के नेतृत्व में उनके गाँव का जत्था आगे बढ़ता जा रहा था।पर यह क्या? थोड़ा ही आगे जाने पर वे चौंक गए। एक दूसरा जत्था इन लोगों की तरफ 'चोरों को गिरफ्तार कराओ, ....चोरों को हवालात पहुँचाओ' जैसे नारे लगता आ रहा था। जत्थे में शामिल लोग जाने-पहचाने थे। कई बार हवालात की हवा खा चुके थे, चोरी के मुक़दमे चल रहे थे उनपर।प्रधान जी का जत्था भौंचक था।उधर वाले जत्थे से आवाज आई,
-कुछ करो प्रधान जी,चोरी रुक नहीं रही।
-हाँ, कोशिश तो है गंगू।
-बड़ी हसरत से आपको चुना था हमने।क्यूँ भई?', उसने अपने गिरोहियों को संबोधित कर कहा।
-हाँ,हाँ,' समवेत स्वर गूँज गया।
-तुम्हारे भरोसे को टूटने नहीं दूँगा, गंगू,' प्रधानजी की भृकुटि पर बल आ गया।
गंगू की रामनामी गमछी लहराते हुए दारोगाजी ने गंगू की तरफ हथकड़ी बढ़ा दी।कालू सेठ के यहाँ वह गमछी अभी-अभी मिली थी।
मौलिक व अप्रकाशित@

Views: 460

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Manan Kumar singh on November 22, 2016 at 10:14am
आभार आदरणीया

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 21, 2016 at 12:34pm

प्रतीकों के माध्यम से आज के हालात पर कटाक्ष करती हुई लघु कथा |बहुत बहुत बधाई 

Comment by Manan Kumar singh on November 21, 2016 at 10:10am
आभार आदर णीया
Comment by pratibha pande on November 21, 2016 at 10:07am

प्रतीकों के माध्यम से कथा का मर्म  सफलतापूर्वक संप्रेषित हो रहा है .. //जत्थे में शामिल लोग जाने-पहचाने थे। कई बार हवालात की हवा खा चुके थे, चोरी के मुक़दमे चल रहे थे उनपर।प्रधान जी का जत्था भौंचक था।उधर वाले जत्थे से आवाज आई,
-कुछ करो प्रधान जी,चोरी रुक नहीं रही// ...

बहुत  बधाई आपको  इस समसामयिक रचना के लिए आदरणीय मनन जी  

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service