ग़ज़ल
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212 -212 -2121 /212
उसपे वारा है जीवन तमाम ।
जिस में मौजूद हैं फ़न तमाम ।
सख़्त लहजे का अंजाम है
हो गए तुझ से बद ज़न तमाम ।
उनको देखूंगा जब तक नहीं
दिल की होगी न धड़कन तमाम।
अबतो आ जाओ बन कर बहार
उजड़ा उजड़ा है गुलशन तमाम ।
किस को सौंपें क़यादत भला
रहबरों में हैं रहज़न तमाम ।
पूछना है तो बिजली से पूछ
किस ने फूंके नशेमन तमाम ।
इश्क़ तस्दीक़ आसाँ नहीं
हैं निहाँ इस में बंधन तमाम ।
( मौलिक व अप्रकाशित )
Comment
मुहतरम जनाब मिथिलेश साहिब, ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया ---
आदरणीय तस्दीक जी, वाह वाह वाह.... क्या ही उम्दा ग़ज़ल कही है. शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल फरमाएं. सादर
मुहतरम जनाब गिरिराज साहिब , ग़ज़ल में शिरकत और आपकी हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया ---
आदरणीय तस्दीक भाई , उमदा गज़ल कही है , दिल से बधाइयाँ आपको ।
जनाब सुरेंद्र नाथ साहिब , ग़ज़ल की सराहना और आपकी हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया
जनाब आमोद बिंदोरी साहिब , ग़ज़ल में गहराई से शिरकत करने और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया , महरबानी ---
मोहतरम जनाब समर कबीर साहिब आदाब , ग़ज़ल में गहराई से शिरकत करने और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया , महरबानी ---
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