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किस ओर जाएँ हम कि हमें रास्ता मिले
फ़िरक़ापरस्ती का न कहीं फन उठा मिले
दिल इस जहान का अभी इतना बड़ा नहीं
हर हक़बयानी पर मेरा ही सर झुका मिले
नाज़ुक है मसअला ये अक़ीदत का दोस्तो
आईना जो दिखाऊँ तो बस बद्दुआ मिले
ख़्वाहिश कहाँ रही मुझे महलों की ऐ ख़ुदा
बस ज़ेरे-आसमाँ तेरा ही आसरा मिले
ढहने लगी हैं आज अदब की इमारतें
इतिहास मलबे में यहाँ कुचला हुआ मिले
धरती थमी-थमी है फलक भी झुका-झुका
मैं मुंतज़िर हूँ अब कि कज़ा मुझसे आ मिले
इंसान खो गया कहीं आभासी दुनिया में
अब तर्जनी से अपनी, सुकूँ ढूँढता मिले
Meaning:
फ़िरक़ापरस्ती - सम्प्रदायवाद, हक़बयानी – सच कहना, अक़ीदत - श्रद्धा,
ज़ेरे-आसमाँ - आसमाँ के नीचे, अदब – साहित्य, मुंतज़िर – इंतज़ार में, कज़ा – मौत
-मौलिक व अप्रकाशित
Comment
बहुत-बहुत शुक्रिया आ. राजेश दीदी
बहुत सुंदर ग़ज़ल हुई शिज्जू भैया दिल से दाद प्रेषित है |
आ. मिथिलेश जी, जनाब तस्दीक अहमद साहिब, आ. कालीपद सर, आ. गिरिराज सर, आ. धर्मेंद्र जी, आ. विजय निकोर सर मेरी ग़ज़ल को मान देेने के लिए मैं तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ. आगे भी यूँ ही हौसला अफ़्ज़ाई करते हैं यही इल्तिज़ा है.
खूबसूरत गज़ल के लिए बधाई।
अच्छे अश’आर हुए हैं आदरणीय शिज्जू जी, दाद कुबूल करें।
आदर्णीय शिज्जु भाई , अच्छी गज़ल कही है . हार्दिक अधाइयाँ आपको ।
बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई जनाब शिज्जू शकूर साहिब |
मुहतरम जनाब शकूर साहिब , अच्छी ग़ज़ल हुई है , दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ---
आदरणीय शिज्जू भाई जी, बहुत शानदार ग़ज़ल कही है. दाद ओ मुबारकबाद कुबूल फरमाएं.
आदरणीय समर कबीर जी की उस्तादाना नज़र के कायल हैं. सादर
बहुत बहुत शुक्रिया जनाब समर साहब, सुझाव का शुक्रिया.
///इस ग़ज़ल की ये कमज़ोरी है कि इसके पांच अशआर में 'न'की तकरार है/// ये आपने बताया तभी मेरा ध्यान गया पहले मेरा ध्यान नहीं गया था. आगे से ध्यान रखूंगा
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