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आहा महेंद्र जी , शब्द दर शब्द आप हृदय में उतारते चले गए . इस प्रस्तुति पर आपको बहुत बहुत बधाई.
ये सारे सेंटा हमारे सपनों में सेंध लगाते आये हैं और आगे भी लगाते रहेंगे ..जरूरत है हम खुद अपने सेंटा बन जाएँ ...इस वैचारिक अतुकांत के लिए बधाई आपको आदरणीय महेंद्र जी
आदरणीय महेन्द्र कुमार जी, अतुकांत में ऐसा अद्भुत प्रवाह देखकर मुग्ध हो गया. और रूपक देखकर चकित हूँ. सैंटा के बहाने आपने क्या खूब कलई खोली है. परत दर परत जो और जैसा खुलना था खुलता गया है. वह प्रस्तुति श्रेष्ठ होती है जो पाठक को अपनी सी लगे. मुझे लगा जैसे आपने मेरे दिल के दर्द को शब्द दे दिए. बहुत बढ़िया. दिल बधाईयाँ स्वीकारें. सादर
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