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मेरे दिल के जज़्बात साथ नहीं देते हैं
और आँसू भी अपनी बात कहते हैं ।

ना जाने नम सी आँखें रहती हैं
और दर्द की पीर आँखें सहती हैं
देखकर बेवफाई यह रोती है
तन्हाई के हर सितम सहती हैं ।

रात की अँधियारी में कभी रोती हैं
कभी काँधे पे सर रख सोती हैं
अश्क बन जब जब दिखाई देतीं हैं
सारा जग समेट अपने में भर लेतीं है ।

दर्द का दरिया आँखों को कहते हैं
आँखों से ही तो इशारे किया करते हैं
सूनी सूनी सी गलियारी है दिल की
हर गलियारी का पता बता देतीं है ।

मौलिक एवं अप्रकाशित

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 18, 2017 at 12:52pm

बहुत अच्छी नज्म कही है आपने प्रिय कल्पना जी दिल से बधाई लीजिये .दूसरी पंक्ति में नहीं टाइप होने से रह गया है देख लीजिये 

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on December 28, 2016 at 8:49pm
आदाब जनाब समर साहब । जी सर ।
Comment by Samar kabeer on December 28, 2016 at 8:28pm
मोहतरमा कल्पना भट्ट साहिबा आदाब,नज़्म कहने की अच्छी कोशिश हुई है,इस प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।
कुछ पंक्तियों में टाइपिंग मिस्टेक देखियेगा ।
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on December 28, 2016 at 7:26pm
धन्यवाद आदरणीय सुरेन्द्रनाथ जी ।
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on December 28, 2016 at 7:25pm
धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश सर जी ।
Comment by नाथ सोनांचली on December 28, 2016 at 6:52pm
आद0 कल्पना भट्ट जी बेहतरीन सृजन के लिए बधाई।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 28, 2016 at 6:50pm

आदरणीया कल्पना जी, नज़्म का बढ़िया प्रयास हुआ है. इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई सादर 

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