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ग़ज़ल -उसका दावा है कि वो भटका नहीं है -- ( गिरिराज भंडारी )

2122   2122    2122

बात कहने का सही लहज़ा नहीं है

या जो रिश्ता था कभी, वैसा नहीं है

 

वो ये कह लें, उनमें तो धोखा नहीं है

पर हक़ीकत है, उन्हें मौक़ा नहीं है

 

गर दशानन आज भी है आदमी में

औरतों में क्या कहीं सुरसा नहीं है ?

 

जो न चल पाया कभी इक गाम अब तक

उसका दावा है कि वो भटका नहीं है

 

ज़ुर्म की गंगा सियासत से है निकली

लाख कह लें, वो कि सच ऐसा नहीं है

 

योजनायें उच्च –निम्नों के लिये हैं

मध्यमों का तो कहीं चर्चा नहीं है

 

वो तवाफ़-ए-ग़ैर को निकला है शायद

मेरा ‘ मैं ’ मुझमें कभी रहता नहीं है

**********************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

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Comment

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on January 4, 2017 at 10:13pm
क्या खूब क्या खूब आदरणीय
Comment by Samar kabeer on January 4, 2017 at 8:55pm
मेरे कहे को मान देने के लिये धन्यवाद ।
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on January 4, 2017 at 8:43pm
बढ़िया ग़ज़ल हुई है आदरणीय गिरिराज सर जी । हार्दिक बधाई ।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 4, 2017 at 8:09pm

आ० अनुज , बहुत बढ़िया . आ० समर साहिब ने बढ़िया सलाह दी . सादर .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 4, 2017 at 5:29pm

आदरणीय समर भाई ,  आपका पुनः आभार --  आपकी सलाह के अनुसार मिसरा ऐसे कर लिया हूँ --
या जो रिश्ता था कभी,वैसा नहीं है' 

मंच मे भी सुधार कर लूँगा ....


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 4, 2017 at 5:27pm

आदरनीय तस्दीक भाई , गज़ल पर शिर्कत और सुखन नवाज़ी के लिये आपका शुक्रिया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 4, 2017 at 5:27pm

आदरनीय तस्दीक भाई , गज़ल पर शिर्कत और सुखन नवाज़ी के लिये आपका शुक्रिया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 4, 2017 at 5:26pm

आदरनीय सुरेश भाई , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया आपका ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 4, 2017 at 5:26pm

आदरणीय महेन्द्र भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 4, 2017 at 5:26pm

आदरणीय महेन्द्र भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ।

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