2122 1212 22
श्याम तेरी अलक में खो जाऊं
एक न्यारे खलक में खो जाऊं
नेह से आँख जो हुयी बोझिल
बंद तेरी पलक में खो जाऊं
तू अँधेरे में काश दिख जाये
और मैं उस झलक में खो जाऊं
रूप ऐसा कि थे सभी पागल
मैं उसी छवि-छलक में खो जाऊं
है सुना वह तेरा ठिकाना है
तो चलूँ उस फलक में खो जाऊं
(मौलिक /अप्रकाशित )
Comment
आ० महेंद्र जी बहुत बहुत आभार
आ० समर कबीर साहिब/ डॉ है मुझे भी अटपटे लग रहे थे आपने उसकी तस्दीक कर दी .आपके हिसाब से सही कर लूंगा सादर .
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