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आ० महेंद्र जी , कथा का प्लाट बहुत अच्छा है ,अच्छे ढंग से कहा भी गया है पर कुछ शंकाएं हैं --
1-तुम्हें बम उन पहाड़ियों के बीच स्थित दुश्मन के अड्डे पर गिराना है।"------- आदेश दुश्मन के अड्डे के लिए है . ऐसे अड्डे क्या गावों और बस्तियों में होते हैं 2-
2-और देशवासियों की भी। "उन पापियों का नामोनिशान मिटा दो!"===== यहाँ ---और देशवासियों की भी। का क्या मतलब है ?
2-
अनुत्तरित प्रश्न पढ़ें
//फिर युद्ध का क्या औचित्य है? और प्लेन का? क्या ये शिक्षा और रोटी से ज़्यादा महत्त्वपूर्ण हैं? इत्यादि। //.. इन बातों में नहीं जाते हुए मै एक दो बिंदु साझा करूंगी जहाँ पर नायक अपनी बात भी रख सकेगा और अंत भी कम बोझिल होगा
कहानी यहाँ से आरंभ हो सकती है जहां // अजय अपना इस्तीफा और सीनियर ऑफिसर को एक पत्र लिख रहा है जिसमे वो अपनी प्रेमकथा और इस समस्या से जुड़े मानवीय पहलू पर उनसे प्रश्न करता है I इसी पत्र में वो फ़ौज छोड़कर बच्चों को पढ़ाने की अपनी मंशा भी लिखता है जिससे नफरत की फसल आगे नहीं बढे I पत्र के माध्यम से कहानी फ़्लैश बेक में चल सकती है I अंत में वो तसल्ली से पेन रखकर खिड़की से बाहर देखता है जहां पर चाँद उदास जरूर है पर निराश नहीं है //
शीर्षक उदास चाँद या अनुत्तरित प्रसगं भी हो सकता है
प्रेम के झोंके सा खूबसूरत प्लाट बधाई .. पर एक बात कचोट रही है अजय की शादी उसकी प्रेमिका से नहीं हो पायी , अब उसको उसी प्रेमिका के गाँव में बम गिराने का आदेश है और उसने दिल पर पत्थर रखकर ये काम कर भी लिया , पर इस व्यक्तिगत ग्लानि,हताशा के चलते लाखों करोड़ों की लागत से बना अपने देश का प्लेन तहस नहस कर देने का क्या औचित्य है?
अब लघुकथा के शीर्षक पर पुनर्विचार निवेदित है. सादर
आदरणीय महेन्द्र जी, आपकी कलम और आदरणीय योगराज सर का मार्गदर्शन दोनों ने मिलकर लाज़वाब कर दिया. जबरदस्त लघुकथा हुई है. सीधे दिल में उतरती सी....अभिभूत कर दिया इस प्रस्तुति ने.... प्रेम और देशप्रेम से ओत प्रोत अद्भुत कथा बन गयी. यकीन मानिये यह रचना आपकी प्रतिनिधि लघुकथाओं में से एक होगी. इस शानदार प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकारें. सादर
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