पिया खड़े है सामने,
घूंघट के पट खोल।
चुप रहने से हो सका, आखिर किसका लाभ,
आज समय की मांग है, नैनो में रक्ताभ।
आधी ताकत लोक की,
अपनी पीड़ा बोल।
पौरुषता का वो करें, अहम् हजारों बार,
लेकिन तेरे बिन सखी, बिलकुल है लाचार।
वो आयेंगे लौटकर,
सारी धरती गोल।
जननी से बढ़कर भला, ताकत किसके पास,
आज संजोना है तुम्हें, बस अपना विश्वास।
हिम्मत से मिटना सहज,
जीवन का ये झोल।
अपने मन की बात को, कहने से मत चूक,
चाहे तेरे सामने, भय की हो बन्दूक।
स्वयम कहेगा देखना,
मुँह में मिसरी घोल।
तेरे ही तो त्याग से, चलता है घरबार,
तेरे क़दमों में छिपा, इस जीवन का सार।
नारी तू नारायणी,
तू तो है अनमोल।
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(मौलिक व अप्रकाशित) © मिथिलेश वामनकर
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3 जनवरी 1831 को जन्मी, स्त्रियों के अधिकारों एवं शिक्षा के लिए काम करने वाली सावित्री बाई फुले को समर्पित
Comment
आ० मिथिलेश जी , आ० सावित्रीबाई फूले का संक्षिप्त परिचय अच्छा लगा . दोहा गीत भी सोणा है पर आपने 'पुरुषत्व' का जो प्रयोग किया वह चकित करता है
पुरुषत्व का वो करें,
2 3 2 2 1 2 ,------------------------------ सादर .
आदरणीय मिथिलेश भाई , खूब दोहा गीत रचा है आपने , नारी शक्ति जागरण आज की ज्वलंत समस्या है । आपको हार्दिक बधाइयाँ । सावित्री बाई फुले की जानकारी विसतार से देने के लिये आपका आभार ।
आदरणीया प्रतिभा जी, इस प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार, बहुत बहुत धन्यवाद. सावित्रीबाई फुले भारतीय समाज में महिलाओं को लेकर किये गए कार्यों के लिए सदैव गर्व का विषय रही हैं किन्तु यह भी सही है कि उन्हें महाराष्ट्र के अलावा किसी दुसरे राज्य में याद तक नहीं किया जाता. उनकी जन्मतिथि या पुण्यतिथि दूर की बात है. आपने चर्चा की है तो मंच हेतु साझा करता चलूँ कि सावित्रीबाई ने उस भारतीय समाज में कन्या शिक्षा हेतु कार्य किया जहाँ महिलाओं का पढ़ना भी पाप माना जाता था. सावित्री बाई फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 को महाराष्ट्र स्थित सतारा के गांव नायगांव में हुआ था. वह एकप्रभावशाली किसान परिवार से थी. उस समय महिलाओं को पढ़ने की स्वतंत्रता नहीं थी, लेकिन सावित्रीबाई फुले ने साहस दिखाते हुए अपनी शिक्षा पूरी की. 1848 में उन्होंने पहला महिला स्कूल पुणे में खोला था. इसके बाद उन्होंने कई महिला स्कूल खोले और कन्यायों को शिक्षित किया. कहा जाता है कि जब वह स्कूल जाती थीं तो महिला शिक्षा के विरोधी लोग पत्थर मारते थे, उन पर गंदगी फेंकते थे. महिलाओं का पढ़ना उस समय पाप माना जाता था. सावित्रीबाई एक साड़ी अपने थैले में लेकर चलती थीं और स्कूल पहुंचकर गंदी कर दी गई साड़ी बदल लेती थीं. दलित परिवार से संबंध रखने वाली सावित्रीबाई फुले की शादी 9 साल की उम्र में ही ज्योतिबा फुले से हो गई थी. उस समय फूले की कोई शिक्षा नहीं हुई थी. समाज में व्याप्त कुरीतियां और महिलाओं की हालत देख सावित्रीबाई फुले ने दलितों और महिलाओं को सम्मान दिलाने का प्रण लिया. बिना किसी आर्थिक मदद के फुले ने लड़कियों के लिए 18 स्कूल खोल दिए थे. उस दौर में ऐसा सोच पाना भी सरल नहीं था. लेकिन सावित्रीबाई फुले ने ऐसा कर दिखाया. उन्होंने एक अस्पताल भी खोला था. इसी अस्पताल में प्लेग महामारी के दौरान सावित्रीबाई प्लेग के मरीज़ों की सेवा करती थीं. एक प्लेग के छूत से प्रभावित बच्चे की सेवा करने के कारण उनको भी यह बीमारी हो लग गई, जिसके कारण उनकी 10 मार्च 1897 को मौत हो गई. उनकी मृत्यु भी सेवा करते हुए ही हुई. उन्होंने अपने पति ज्योतिबा फुले के साथ छुआछूत जैसी कुरीति के विरुद्ध भी काम किया. सादर।
आदरणीय तस्दीक जी, इस प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार, बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।
आदरणीय सुरेश कुमार कल्याण जी, इस प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार, बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।
परिवार समाज में स्त्री के योगदान और अधिकारों की बात करती बहुत प्रभाव शाली रचना हार्दिक बधाई आपको .. सावित्री बाई फुले के बारे में जानकार गर्व की अनुभूति हुई
मुहतरम जनाब मिथिलेश साहिब , सुन्दर दोहा गीत हुआ है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं --
आदरणीय मोहम्मद आरिफ़ जी, इस प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार, बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।
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