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आदरणीय सुरेन्द्र जी, आपने महाकवि बाण के प्रभात वर्णन से प्रेरित होकर यह प्रस्तुति लिखी है तो सुलभ सन्दर्भ हेतु उसे अवश्य साझा कीजियेगा. महाकवि बाण ने 'हर्षचरित' में दो बार और 'कादम्बिनी' में दो बार प्रभात वर्णन किया है. यह आपने किस प्रभात वर्णन से प्रेरित होकर लिखा है उसका संक्षिप्त विवरण देंगे तो मंच को भी इसका लाभ होगा. चूंकि ये ग्रन्थ संस्कृत में हैं इसलिए इन्हें ज्यादा पढ़ा नहीं है. काफ़ी पहले अनुवाद पढ़ा था किन्तु अब बहुत ज्यादा याद भी नहीं है.
दूसरी बात आपने अपनी प्रस्तुति के विषय में कहा है - //यह एक आधुनिक कविता के पुट लिए रचना है।// और //इस रचना को गीत न समझ कर आधुनिक कविता की मान्यता दीजिये// इन कथनों के आधार पर भी आपका मार्गदर्शन निवेदित है. चूंकि कथन आपके है अतः इस प्रस्तुति के सन्दर्भ में इनका तात्पर्य भी आप ही अच्छे से समझा सकते है. सादर
आदरणीय बृजेश जी, आप मंच के वरिष्ठ सदस्य हैं। आप मंच पर मुझसे काफी पहले से सक्रीय है। मंच के आयोजनों में आप कई विधाओं में लिख चुके हैं। आपकी गीत, नवगीत, अतुकांत, ग़ज़ल, छंद, लघुकथा आदि कई विधाओं में मंच पर प्रस्तुत रचनाओं को पढ़ा और उनसे सीखा भी है. इसलिए आपसे केवल निवेदन कर सकता हूँ कि मंच पर आये नव अभ्यासियों से आप प्रश्न करने की बजाय उनका मार्गदर्शन करने की कृपा करें। इस मंच के हम सभी नव-अभ्यासियों को आपके मार्गदर्शन की आवश्यकता है. आप कई-कई विधाओं के एक लम्बी अवधि से अभ्यासी हैं और कई विधाओं में पारंगत भी है. अतः आपसे प्रश्नों के उत्तर की अपेक्षा अधिक है. आपके जैसे पारंगत अभ्यासी के प्रश्नों का उत्तर नव अभ्यासी कैसे और कितना दे पाएंगे, यह आप भी भलीभांति समझते हैं. आपके उठाये प्रश्न वाजिब होते हैं लेकिन क्या यह सही नहीं हैं कि उनके उत्तर भी आपके पास ही हैं. यदि कोई प्रस्तुति या उसकी पंक्तियाँ प्रश्न खड़ा कर रही है तो यकीन मानिए रचनाकार उससे अनभिज्ञ है या उस दिशा में सोच नहीं सका है. इस कारण कोई त्रुटी हुई है. आप अपने लम्बे अभ्यास और अनुभव के आधार पर यदि मार्गदर्शन करें तो नव अभ्यासियों को लाभ भी होगा. अन्यथा नव अभ्यासी अपनी प्रस्तुति के पक्ष में तर्क देने में ही अपनी उर्जा नष्ट करते रह जायेंगे. आप मंच के वरिष्ठ सदस्य हैं और मेरे लिए अग्रज और बड़े भाई के समान है. इसलिए इतना कहने की धृष्टता कर गया. मेरा निवेदन स्वीकार कर हम नव अभ्यासियों को अनुगृहित करेंगे, इसी आशा के साथ क्षमा सहित निवेदन कर रहा हूँ.
जहाँ तक इस प्रस्तुति की बात है तो मेरी समझ से यह 16-16 मात्रा आधारित द्विपदियां हैं। गीत के मुखड़े और अन्तरे का पारंपरिक प्रारूप इसमें नहीं हैं। इसलिए निवेदन किया था। आप इस पर ज्यादा अच्छे से रौशनी डाल सकते हैं. सादर
भाई मिथिलेश जी कुछ दिक्कत थी कंप्यूटर के टाइपिंग टूल में जिससे काफी देर से अक्षर स्क्रीन पर आ रहे थे जिसके कारण टिप्पणी संशोधित न हो सकी.
वैसे भी यह रचना गीत नहीं है तो किस विधा में है? प्रथम दृष्टया यह मुझे गीत जैसा लगा, बाकी मैं पहले निवेदित कर चुका हूँ.
सुरेन्द्र जी किसी तरह की आधुनिक कविता बता रहे हैं, मुझे इसकी जानकारी नहीं थी.
सुरेन्द्र भाई आपने यह कविता बाण को पढ़कर लिखी है और मैंने बाण को पढ़ा नहीं है. समस्या मेरे लिए तो और विकट हो गई.
रही बात हौसला अफजाई की तो भाई मैं अभी तक उसी पंक्ति पर अटका हूँ.
'हुआ तेज जब अरुणोदय का' - मैं इस पंक्ति का मतलब नहीं समझ पाया. अरुणोदय का 'क्या' तेज़ हुआ? यह पंक्ति मुझे स्पष्ट नहीं हो पा रही.
फिर निशा जब भागने लगी तब 'हँसता पूरब देख चंद्र को' क्यों?
भाई मैं साहित्य के ककहरे पर अटका हूँ इसलिए बाण के स्तर पर लिखी इस रचना के निहितार्थ नहीं समझ पा रहा. इसके लिए मैंने अपनी पूर्व टिप्पणी में क्षमा भी माँगी थी.
एक बार पुनः क्षमा प्रार्थी हूँ.
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