2122 1212 22
गर वो करता है बात बेपर की ?
क्या ज़रूरत नहीं है पत्थर की
क्या हुकूमत लगा रही है अब ?
कीमत उस फतवे से किसी सर की
सिर्फ तहरीर में मिले भाई
सुन कहानी तू दाउ- गिरधर की
जिनके अजदाद आज ज़िन्दा हों
वो करें बात गुज़रे मंज़र की
क्या मुहल्ला तुझे बतायेगा ?
आग भड़की थी कैसे उस घर की
दीन ओ ईमाँ की बात करता है
क्या हवा लग न पायी बाहर की
रोशनी आज उनको देखेगी
रुख़ से चिलमन अगर ज़रा सरकी
फेर कर देख मेरी गरदन पर
आजमा ले तू धार तू ख़ंज़र की
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरणीय गिरिराज भाईसाब कमाल की ग़ज़ल हुयी है इस शानदार ग़ज़ल पर तहे दिल बधायी स्वीकार करें सादर
आदरणीय सुशील भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ।
आदरणीय समर भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार । आपकी इस्लाह के अनुसार सुधार कर रहा हूँ , आपका ःरदय से आभार ।
आदरणीय सुरेन्द्र भाई , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया ।
आदरणीय मिथिलेश भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका ह्र्दय से आभार ।
आदरणीया राजे जी , हौसला अफज़ाई का शुक्रिया । आपकी इस्लाह अच्छी लगी , सुधार कर लूँगा । आभार आपका ।
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