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हाँ तुम सपने में आई थी

हाँ तुम सपने में आई थी

होठों पर मुस्कान सजाये
बालों में बादल लहराए
गालों पर थी सुबह लालिमा
माथे पर बिंदिया चमकाए
जब तुमको मैंने देखा था
पास खड़ी तुम मुस्काई थी
हाँ तुम सपने में आई थी

यौवन का श्रृंगार सजाये
इठलाती सी मन को भाये
देह सुगन्धित अरब इत्र सी
खुश्बू साँसों में बस जाए
मेहंदी के हाथों को थामा
अजब अदा से बलखाई थी
हाँ तुम सपने में आई थी

तुमको अपने पास बिठाया
मैं कितने अरमान सजाया
तुम्हे देखने की चाहत में
बाकी का संसार भुलाया
जब तेरे घूँघट को टारा
सीने से लग शरमाई थी
हाँ तुम सपने में आई थी

जीवित होंठ थे, प्याला था
यौवन मधुरस हाला था
इनको पीने की चाहत में
आलिंगन कर डाला था
ज्यों इनपर अधरों को रक्खा
नींद खुली थी, तन्हाई थी
हाँ तुम सपने में आई थी

मौलिक एवं अप्रकाशित

आशीष यादव

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Comment

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Comment by आशीष यादव on September 12, 2020 at 5:14am

आदरणीय श्री बृजेश कुमार ब्रज जी बहुत बहुत धन्यवाद।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on January 20, 2017 at 9:51pm
बहुत सुन्दर सरस गीत..
Comment by आशीष यादव on January 19, 2017 at 7:26pm
सर्व श्री आदरणीय जन।
"टारा"शब्द का अर्थ हटाना होता है।
सादर
Comment by आशीष यादव on January 19, 2017 at 7:22pm
आदरणीय समर जी प्रणाम। आपको गीत पसंद आई मैं धन्य हुआ।
Comment by आशीष यादव on January 19, 2017 at 7:19pm
आदरणीय आरिफ जी प्रणाम। आपको गीत पसंद आई मैं धन्य हुआ।
Comment by आशीष यादव on January 19, 2017 at 7:16pm
आदरणीय मिथिलेश जी सादर प्रणाम। आपको रचना पसंद आई मैं धन्य हूँ। वांछित सुधार हेतु हृदय से आभार
Comment by Samar kabeer on January 19, 2017 at 6:08pm
जनाब आशीष यादव जी आदाब,गीत का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
जनाब मिथिलेश वामनकर जी ने वाक़ई इसको गीत बना दिया है ।
"टारा"शब्द मेरे लिये भी नया है भाई ?
Comment by Mohammed Arif on January 19, 2017 at 5:41pm
आदरणीय आशीष यादवजी, नयमस्कार ! सुंदर चौपाई गीत के लिए बधाई ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 19, 2017 at 4:46pm

'टारा' शब्द पर गुनीजनों के मार्गदर्शन की प्रतीक्षा है. सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 19, 2017 at 4:42pm

आदरणीय आशीष यादव जी, आपने बहुत बढ़िया स्वप्न कथा को एक गीत में शाब्दिक किया है. आपने 16-16 मात्रा भार पर गीत लिखा है. जहाँ मात्रा भार में मात्रा की कमी है या कथ्य और प्रभावकारी हो सकता है, उसे मैंने अपने अनुसार गुनगुनाने का प्रयास किया है. इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.

हाँ तुम सपने में आई थी ............

होठों पर मुस्कान सजाये .............
बालों में बादल लहराए ................
गालों पर थी सुबह लालिमा .........
माथे पर बिंदिया चमकाए ............
जब तुमको मैंने देखा था ............
पास खड़ी तुम मुस्काई थी ..........
हाँ तुम सपने में आई थी ............

यौवन का श्रृंगार सजाये ..............
इठलाती सी मन को भाये ..........
देह सुगन्धित अरब इत्र सी ........
खुश्बू साँसों में बस जाए ...........
मेहंदी के हाथों को थामा ...........
अजब अदा से बलखाई थी .........
हाँ तुम सपने में आई थी ..........

तुमको अपने पास बिठाया ........
मैं कितने अरमान सजाया ........
तुम्हे देखने की चाहत में ........
बाकी का संसार भुलाया ........
जब तेरे घूँघट को टारा ........
सीने से लग शरमाई थी ........
हाँ तुम सपने में आई थी ........

जीवित होंठ थे, प्याला था ........
यौवन मधुरस हाला था ...........
इनको पीने की चाहत में ........
आलिंगन कर डाला था .............
ज्यों इनपर अधरों को रक्खा .......
नींद खुली थी, तन्हाई थी ...........
हाँ तुम सपने में आई थी ............

 

हाँ तुम सपने में आई थी 

होठों की पंखुड़ी सजाये 
बालों के बादल लहराए 
गालों पर लालिमा सुबह की
माथे पर बिंदिया चमकाए 
जब तुमको मैंने देखा तो 
पास खड़ी तुम मुस्काई थी 
हाँ तुम सपने में आई थी 

यौवन का शृंगार सलोना 
मुग्ध-मुदित सा मन का कोना 
देह सुगन्धित अरब इत्र सी 
साँसों का फिर ख़ुशबू होना 
थामा मेहंदी के हाथों को,
अजब अदा से बलखाई थी 
हाँ तुम सपने में आई थी 

तुमको अपने पास बिठाया 
मैने इक अरमान सजाया 
तुम्हे देखने की चाहत में 
बाकी का संसार भुलाया 
जब तेरे घूँघट को टारा 
सीने से लग शरमाई थी 
हाँ तुम सपने में आई थी

 

आगे अधरों का प्याला था 
यौवन का मधुमय हाला था 
इनको पाने की चाहत में 
आलिंगन करने वाला था  
ज्यों ही इन पर होंठ रखे, बस...
नींद खुली फिर तन्हाई थी 
हाँ तुम सपने में आई थी 

 

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