For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हाँ तुम सपने में आई थी

हाँ तुम सपने में आई थी

होठों पर मुस्कान सजाये
बालों में बादल लहराए
गालों पर थी सुबह लालिमा
माथे पर बिंदिया चमकाए
जब तुमको मैंने देखा था
पास खड़ी तुम मुस्काई थी
हाँ तुम सपने में आई थी

यौवन का श्रृंगार सजाये
इठलाती सी मन को भाये
देह सुगन्धित अरब इत्र सी
खुश्बू साँसों में बस जाए
मेहंदी के हाथों को थामा
अजब अदा से बलखाई थी
हाँ तुम सपने में आई थी

तुमको अपने पास बिठाया
मैं कितने अरमान सजाया
तुम्हे देखने की चाहत में
बाकी का संसार भुलाया
जब तेरे घूँघट को टारा
सीने से लग शरमाई थी
हाँ तुम सपने में आई थी

जीवित होंठ थे, प्याला था
यौवन मधुरस हाला था
इनको पीने की चाहत में
आलिंगन कर डाला था
ज्यों इनपर अधरों को रक्खा
नींद खुली थी, तन्हाई थी
हाँ तुम सपने में आई थी

मौलिक एवं अप्रकाशित

आशीष यादव

Views: 1042

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by आशीष यादव on September 12, 2020 at 5:14am

आदरणीय श्री बृजेश कुमार ब्रज जी बहुत बहुत धन्यवाद।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on January 20, 2017 at 9:51pm
बहुत सुन्दर सरस गीत..
Comment by आशीष यादव on January 19, 2017 at 7:26pm
सर्व श्री आदरणीय जन।
"टारा"शब्द का अर्थ हटाना होता है।
सादर
Comment by आशीष यादव on January 19, 2017 at 7:22pm
आदरणीय समर जी प्रणाम। आपको गीत पसंद आई मैं धन्य हुआ।
Comment by आशीष यादव on January 19, 2017 at 7:19pm
आदरणीय आरिफ जी प्रणाम। आपको गीत पसंद आई मैं धन्य हुआ।
Comment by आशीष यादव on January 19, 2017 at 7:16pm
आदरणीय मिथिलेश जी सादर प्रणाम। आपको रचना पसंद आई मैं धन्य हूँ। वांछित सुधार हेतु हृदय से आभार
Comment by Samar kabeer on January 19, 2017 at 6:08pm
जनाब आशीष यादव जी आदाब,गीत का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
जनाब मिथिलेश वामनकर जी ने वाक़ई इसको गीत बना दिया है ।
"टारा"शब्द मेरे लिये भी नया है भाई ?
Comment by Mohammed Arif on January 19, 2017 at 5:41pm
आदरणीय आशीष यादवजी, नयमस्कार ! सुंदर चौपाई गीत के लिए बधाई ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 19, 2017 at 4:46pm

'टारा' शब्द पर गुनीजनों के मार्गदर्शन की प्रतीक्षा है. सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 19, 2017 at 4:42pm

आदरणीय आशीष यादव जी, आपने बहुत बढ़िया स्वप्न कथा को एक गीत में शाब्दिक किया है. आपने 16-16 मात्रा भार पर गीत लिखा है. जहाँ मात्रा भार में मात्रा की कमी है या कथ्य और प्रभावकारी हो सकता है, उसे मैंने अपने अनुसार गुनगुनाने का प्रयास किया है. इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.

हाँ तुम सपने में आई थी ............

होठों पर मुस्कान सजाये .............
बालों में बादल लहराए ................
गालों पर थी सुबह लालिमा .........
माथे पर बिंदिया चमकाए ............
जब तुमको मैंने देखा था ............
पास खड़ी तुम मुस्काई थी ..........
हाँ तुम सपने में आई थी ............

यौवन का श्रृंगार सजाये ..............
इठलाती सी मन को भाये ..........
देह सुगन्धित अरब इत्र सी ........
खुश्बू साँसों में बस जाए ...........
मेहंदी के हाथों को थामा ...........
अजब अदा से बलखाई थी .........
हाँ तुम सपने में आई थी ..........

तुमको अपने पास बिठाया ........
मैं कितने अरमान सजाया ........
तुम्हे देखने की चाहत में ........
बाकी का संसार भुलाया ........
जब तेरे घूँघट को टारा ........
सीने से लग शरमाई थी ........
हाँ तुम सपने में आई थी ........

जीवित होंठ थे, प्याला था ........
यौवन मधुरस हाला था ...........
इनको पीने की चाहत में ........
आलिंगन कर डाला था .............
ज्यों इनपर अधरों को रक्खा .......
नींद खुली थी, तन्हाई थी ...........
हाँ तुम सपने में आई थी ............

 

हाँ तुम सपने में आई थी 

होठों की पंखुड़ी सजाये 
बालों के बादल लहराए 
गालों पर लालिमा सुबह की
माथे पर बिंदिया चमकाए 
जब तुमको मैंने देखा तो 
पास खड़ी तुम मुस्काई थी 
हाँ तुम सपने में आई थी 

यौवन का शृंगार सलोना 
मुग्ध-मुदित सा मन का कोना 
देह सुगन्धित अरब इत्र सी 
साँसों का फिर ख़ुशबू होना 
थामा मेहंदी के हाथों को,
अजब अदा से बलखाई थी 
हाँ तुम सपने में आई थी 

तुमको अपने पास बिठाया 
मैने इक अरमान सजाया 
तुम्हे देखने की चाहत में 
बाकी का संसार भुलाया 
जब तेरे घूँघट को टारा 
सीने से लग शरमाई थी 
हाँ तुम सपने में आई थी

 

आगे अधरों का प्याला था 
यौवन का मधुमय हाला था 
इनको पाने की चाहत में 
आलिंगन करने वाला था  
ज्यों ही इन पर होंठ रखे, बस...
नींद खुली फिर तन्हाई थी 
हाँ तुम सपने में आई थी 

 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service