हाँ तुम सपने में आई थी
होठों पर मुस्कान सजाये
बालों में बादल लहराए
गालों पर थी सुबह लालिमा
माथे पर बिंदिया चमकाए
जब तुमको मैंने देखा था
पास खड़ी तुम मुस्काई थी
हाँ तुम सपने में आई थी
यौवन का श्रृंगार सजाये
इठलाती सी मन को भाये
देह सुगन्धित अरब इत्र सी
खुश्बू साँसों में बस जाए
मेहंदी के हाथों को थामा
अजब अदा से बलखाई थी
हाँ तुम सपने में आई थी
तुमको अपने पास बिठाया
मैं कितने अरमान सजाया
तुम्हे देखने की चाहत में
बाकी का संसार भुलाया
जब तेरे घूँघट को टारा
सीने से लग शरमाई थी
हाँ तुम सपने में आई थी
जीवित होंठ थे, प्याला था
यौवन मधुरस हाला था
इनको पीने की चाहत में
आलिंगन कर डाला था
ज्यों इनपर अधरों को रक्खा
नींद खुली थी, तन्हाई थी
हाँ तुम सपने में आई थी
मौलिक एवं अप्रकाशित
आशीष यादव
Comment
आदरणीय श्री बृजेश कुमार ब्रज जी बहुत बहुत धन्यवाद।
'टारा' शब्द पर गुनीजनों के मार्गदर्शन की प्रतीक्षा है. सादर
आदरणीय आशीष यादव जी, आपने बहुत बढ़िया स्वप्न कथा को एक गीत में शाब्दिक किया है. आपने 16-16 मात्रा भार पर गीत लिखा है. जहाँ मात्रा भार में मात्रा की कमी है या कथ्य और प्रभावकारी हो सकता है, उसे मैंने अपने अनुसार गुनगुनाने का प्रयास किया है. इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.
हाँ तुम सपने में आई थी ............ होठों पर मुस्कान सजाये ............. यौवन का श्रृंगार सजाये .............. तुमको अपने पास बिठाया ........ जीवित होंठ थे, प्याला था ........
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हाँ तुम सपने में आई थी होठों की पंखुड़ी सजाये यौवन का शृंगार सलोना तुमको अपने पास बिठाया
आगे अधरों का प्याला था
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