For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बहरे हज़ज़ सालिम मुसम्मन
1222 1222 1222 1222
सुनाऊँ किस तरह किस्से बता दे खाकसारों के
चली ऐसी हवा की झर गये पत्ते चिनारों के

हुईं क्या हैं खतायें आसमां से चाँद ने पूँछा
कि सारी रात क्यों बहते रहे आँसू सितारों के

तुम्हारे साथ लौटी है दरो दीवार पर रौनक
तड़फते रह गये हैं नीव के पत्थर मिनारों के

चमन के सुर्खरू मंज़र घुली खुशबू फिजाओं में
ये क्या दस्तूर है की देखना अब गम बहारों के

वहीँ खुशियाँ वहीँ पे गम अज़ब आलम विदाई का
शिकन उभरी नजर आते हैं दर्दो गम कहारों के

मिलन की आस दिल में ले चली इक नाव अलबेली
उठी ऐसी लहर की ढह गये अरमां किनारों के

न रखना उल्फतें उनसे न होंठों पे गिला रखना
बड़े कमज़र्फ होते हैं सहारे गम निसारों के
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'

Views: 812

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on January 23, 2017 at 1:54pm
रचना पटल पे आपकी उपस्थिति स्वागतयोग्य है आदरणीय रवि शुक्ला जी..'शिकन' स्त्रीलिंग है आदरणीय इसलिए 'शिकन उभरी'..'नजर आते हैं' यहाँ 'दर्दो गम' के लिए है..आगे आपकी सलाह महत्पूर्ण होगी..
Comment by Ravi Shukla on January 23, 2017 at 1:09pm

आदरणीय ब्रजेश कुमार जी बढि़या गजल कही है आपने बधाई इसके लिये । पाचवे शेर केे सानी मिसरा में हमें कुछ अटकाव लग रहा है शिकन स्‍त्रील्रिंग है  और शिकन उभरी नजर आते है । दे‍खियेगा । सादर   

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on January 22, 2017 at 10:10pm
समझ गया आदरणीय हर्फ़ ए इज़ाफत शब्द का मूल वज्न 1 ही होगा..इस हिसाब से मतले का उला मिसरा वहर से बाहर हुआ..आपकी सह्रदयता को नमन करता हूँ...प्रणाम
Comment by Samar kabeer on January 22, 2017 at 8:58pm
हिन्दी और अरबी भाषा के शब्दों में इज़ाफ़त का इस्तेमाल नहीं किया जाता अज़ीज़म,"वफ़ा"शब्द अरबी भाषा का है इसलिये इसमें इज़ाफ़त नहीं लगाई जा सकती,इस लिये ये सही तरकीब नहीं है,उम्मीद है बात स्पष्ट हुई होगी ?
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on January 22, 2017 at 3:11pm
आदरणीय समर कबीर जी आपके रचना पटल पे उपस्थिति और सारगर्भित टिप्पड़ी से हम जैसे नवागन्तुक काफी कुछ सीखते हैं..आपके बताये अनुसार सुधार करता हूँ साथ ही स्वयं की ज्ञान वृद्धि के लिए आपसे अनुरोध है की 'वफ़ा ए खाकसारों'सही नहीं है थोडा विस्तार में समझा दें..सादर नमन
Comment by Samar kabeer on January 22, 2017 at 1:45pm
जनाब बृजेश कुमार 'ब्रज'साहिब आदाब,उमा ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
मतले के ऊला मिसरे में 'वफ़ा-ए-ख़ाकसरों'की तरकीब सही नहीं है,मिसरा यूँ कह सकते हैं:-
'सुनाऊँ किस तरह क़िस्से बता दे ख़ाकसारों के'
तीसरे शैर के ऊला में 'पे'के स्थान पर 'की'शब्द उचित होगा ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण भाई अच्छी ग़ज़ल हुई है , बधाई स्वीकार करें "
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"आदरणीय सुरेश भाई , बढ़िया दोहा ग़ज़ल कही , बहुत बधाई आपको "
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीया प्राची जी , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"सभी अशआर बहुत अच्छे हुए हैं बहुत सुंदर ग़ज़ल "
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

पूनम की रात (दोहा गज़ल )

धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।जगमग है कण-कण यहाँ, शुभ पूनम की रात।जर्रा - जर्रा नींद में ,…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी

वहाँ  मैं भी  पहुंचा  मगर  धीरे धीरे १२२    १२२     १२२     १२२    बढी भी तो थी ये उमर धीरे…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"आ.प्राची बहन, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"कहें अमावस पूर्णिमा, जिनके मन में प्रीत लिए प्रेम की चाँदनी, लिखें मिलन के गीतपूनम की रातें…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
Jul 12
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Jul 10

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service