2122 2122 212
दिल से जब नाम-ए ख़ुदा जाता रहा
दरमियानी मो’जिजा जाता रहा
ख़ुद पे आयीं मुश्किलें तो, शेख जी
क्यूँ भला हर फल्सफ़ा जाता रहा
जो इधर थे हो गये जब से उधर
कह दिये , हर वास्ता जाता रहा
अब ख़बर में वाक़िया कुछ और है
था जो कल का हादसा जाता रहा
गर हुजूम –ए शहर का है साथ , तो
जो किया तुमने बुरा जाता रहा
आँखों में पट्टी, तराजू हाथ में
जब दिखे, तो हौसला जाता रहा
कह ज़दीद, अब का ज़माना और है
वक़्त कल का इश्क़िया, जाता रहा
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
मो' जिजा = चमत्कार , फल्सफा = दर्शन ( शास्त्र ) , ज़दीद = आधुनिक
Comment
आदरणीय समर भाई , ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सराहना के लिये हृदय से आभारी हूँ ।
मो'जिज़ा का अर्थ इतनी बारीकी से मंच पर रखने और समझाने के लिये आपका हृदय से आभार ।
सानी मिसरा मै ज़रूर बदल लूँगा - आपका पुनः आभार ।
आदरणीय सुशील भाई , गज़ल पर उपस्थिति और सराहना के लिये आपका हृदय से आभार ।
आदरणीय आशुतोष भाई , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया ।
आदरनीय मिथिलेश भाई , गज़ल की सराहना के लिये हृदय से आभार ।
आदरणीय सिरेन्द्र भाई , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया ।
आदरणीया राजेश जी , गज़ल की सराहना कर उत्साह वर्धन करने के लिये आपका हार्दिक आभार ।
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