For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल- इसे जुल्म में न शुमार कर

11212 11212 11212 11212
है नई नई ये मेंरी ख़ता इसे जुल्म में न शुमार कर ।
है जो आशिकी का ये दौर अब इसे इस तरह न तू ख्वार कर ।।

उसे जिंदगी से नफ़ा मिला मुझे दर्द का है सिला मिला ।
ये हिसाब अब न दिखा मुझे न तिजारतों में दरार कर ।।

वो हवा चली ही नहीं कभी वो दरख़्त को न नसीब थी ।
मेरे फ़िक्र की है ये आरज़ू तू इसी चमन में बहार कर ।।

यहाँ चाहतों में है दम कहाँ कई चाहतें भी दफ़ा हुईं ।
है मुहब्बतों का सवाल ये कहीं जिंदगी को निसार कर ।।

हमें पत्थरों सा है दिल मिला मेरे दर्द की है न इंतिहा ।
न ठहर ठहर के तू वार कर हमें गम न कोई उधार कर ।।

तेरी आसमा पे नज़र गई तेरी हसरतें भी बदल गईं ।
है उड़ान की तेरी ख्वाहिशें तो कफ़स से खुद को फरार कर ।।

सारी उल्फतों में हैं दौलतें तेरा रूह से है न वास्ता ।
तेरे हौसलों में है दम अगर मेरे गर्दिशों से करार कर ।।

ये जो आंसुओ के निशान हैं न छुपा के चल तू नकाब में ।
तुझे पढ़ लिया हूँ मैं गौर से यूँ तमाम रात गुज़ार कर ।।

--नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित

Views: 439

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Mohammed Arif on January 27, 2017 at 8:11am
आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठीजी,अच्छी ग़ज़ल । बधाई स्वीकार करें ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 26, 2017 at 9:59pm

आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी, बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने. शेर-दर-शेर दाद के साथ मुबारकबाद कुबूल फरमाएं. आदरणीय समर कबीर जी की इस्लाह तो मिल ही गई है. सादर 

Comment by Samar kabeer on January 26, 2017 at 7:08pm
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
मतले के ऊला मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर देखिये 'ज़ुल्म में' ।
तीसरे शैर में ऐब-ए-तनाफ़ुर देखिये ' न नसीब' ।
पांचवें शैर में शुतरगुर्बा दोष है,'हमें'और 'मेरे' ।
सातवें शैर के सानी में 'मेरे गर्दिशों'को "मेरी गर्दिशों'करें, "गर्दिश'स्त्रीलिंग है ।
और हाँ,तीसरे शैर के सानी में 'मेरे फ़िक्र'को "मेरी फ़िक्र"कर लें,फ़िक्र स्त्रीलिंग है ।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 26, 2017 at 11:43am

आदरणीय नवीन मणि जी ..इस ग़ज़ल पर और गणतंत्र दिवस पर हार्दिक शुभकामनायें स्वीकारे करें सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त चित्र को साकार करते सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
11 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"सार छंद +++++++++ धोखेबाज पड़ोसी अपना, राम राम तो कहता।           …"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"भारती का लाड़ला है वो भारत रखवाला है ! उत्तुंग हिमालय सा ऊँचा,  उड़ता ध्वज तिरंगा  वीर…"
yesterday
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"शुक्रिया आदरणीय चेतन जी इस हौसला अफ़ज़ाई के लिए तीसरे का सानी स्पष्ट करने की कोशिश जारी है ताज में…"
yesterday
Chetan Prakash commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"संवेदनाहीन और क्रूरता का बखान भी कविता हो सकती है, पहली बार जाना !  औचित्य काव्य  / कविता…"
yesterday
Chetan Prakash commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"अच्छी ग़ज़ल हुई, भाई  आज़ी तमाम! लेकिन तीसरे शे'र के सानी का भाव  स्पष्ट  नहीं…"
Thursday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on surender insan's blog post जो समझता रहा कि है रब वो।
"आदरणीय सुरेद्र इन्सान जी, आपकी प्रस्तुति के लिए बधाई।  मतला प्रभावी हुआ है. अलबत्ता,…"
Thursday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . .
"आदरणीय सौरभ जी आपके ज्ञान प्रकाश से मेरा सृजन समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी"
Wednesday
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
Wednesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 182 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

गजल - सीसा टूटल रउआ पाछा // --सौरभ

२२ २२ २२ २२  आपन पहिले नाता पाछानाहक गइनीं उनका पाछा  का दइबा का आङन मीलल राहू-केतू आगा-पाछा  कवना…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . .
"सुझावों को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय सुशील सरना जी.  पहला पद अब सच में बेहतर हो…"
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service