For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

212 212 212
इस तरह रूठ मत जाइए ।
आइये बस चले आइये ।।

आज तो जश्न की रात है ।
घुंघरुओं की सदा लाइए ।।

टूट जाए न दिल ही मेरा ।
जुल्म इतना नहीं ढाइये ।।

बेगुनाही पे चर्चा बहुत ।
कुछ सबूतों से भरमाइये ।।

जो तरन्नुम में था मैं सुना ।
गीत फिर से वही गाइये ।।

हम गिरफ्तार पहले से हैं ।
मत रपट कोई लिखवाइये।।

है ग़ज़ल में मेरे तू ही तू ।
एक मिसरा तो पढ़वाइये ।।

हूँ तेरे हुस्न का आइना ।
देखकर कुछ संवर जाइए ।।

धूप का है इरादा बुरा ।
बन के काली घटा छाइए ।।

कुछ तो मजबूरियां थीं तेरी ।
बेवजह मत कसम खाइये ।।

यह मुनासिब कहाँ है सनम ।
जख़्म से दिल को बहलाइये ।।

-- नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित

Views: 534

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Naveen Mani Tripathi on February 8, 2017 at 9:08pm
आ0 डॉ आशुतोष मिश्र जी सादर आभार
Comment by Naveen Mani Tripathi on February 8, 2017 at 9:07pm
आदरणीय मो0 आरिफ साहब तहेदिल से शुक्रिया ।
Comment by Naveen Mani Tripathi on February 8, 2017 at 9:05pm
आदरणीय मिथिलेश वामनकर सर सादर आभार के साथ नमन
Comment by Naveen Mani Tripathi on February 8, 2017 at 9:05pm
आदरणीय कबीर सर सादर नमन । अत्यंत कीमती सलाह के तहेदिल से आभारी हूँ ।
Comment by Samar kabeer on February 8, 2017 at 9:01pm
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

'है ग़ज़ल में मेरे तू ही तू
एक मिसरा तो पढ़वाइये'
इस शैर में 'ग़ज़ल'शब्द स्त्रीलिंग है, इसलिये मेरे नहीं कह सकते,दूसरी बात,'पढ़वाइये'सम्बोधन आदर का है, इसके साथ 'तू'शब्द मुनासिब नहीं,इसलिये इस शैर को यूँ कह सकते हैं :-
'हो ग़ज़ल में मेरी तुम ही तुम
एक मिसरा तो पढ़वाइये'

'हूँ तेरे हुस्न का आइना
देख कर कुछ सँवर जाइये'
इस शैर में भी 'तेरे'शब्द रदीफ़ का मज़ाक़ उड़ा रहा है,इसे यूँ कह सकते हैं :-
"आइना हूँ तुम्हारा सनम
देख कर कुछ सँवर जाइये"

'कुछ तो मजबूरियाँ थीं तेरी
बेवजह मत क़सम खाइये'
इस शैर में भी वही ख़राबी है 'तेरी'शब्द मज़ा ख़राब कर रहा है,इस शैर को यूँ कह सकते हैं :-
"माना, थीं कुछ तो मजबूरियाँ
बेवजह मत क़सम खाइये"

बाक़ी शुभ शुभ ।
Comment by Mohammed Arif on February 8, 2017 at 5:45pm
आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब, उम्दा ग़ज़ल की प्रस्तुति पर मुबारकबाद कुबूल करें ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 8, 2017 at 4:09pm

आदरणीय नवीन जी, इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई. सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 8, 2017 at 2:12pm

इस सुंदर प्रस्तुति पर बधाई सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय धर्मेन्द्र भाई, आपसे एक अरसे बाद संवाद की दशा बन रही है. इसकी अपार खुशी तो है ही, आपके…"
16 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

शोक-संदेश (कविता)

अथाह दुःख और गहरी वेदना के साथ आप सबको यह सूचित करना पड़ रहा है कि आज हमारे बीच वह नहीं रहे जिन्हें…See More
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"बेहद मुश्किल काफ़िये को कितनी खूबसूरती से निभा गए आदरणीय, बधाई स्वीकारें सब की माँ को जो मैंने माँ…"
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी में (ग़ज़ल)
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई। कोई लौटा ले उसे समझा-बुझा…"
Wednesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आयोजनों में सम्मिलित न होना और फिर आयोजन की शर्तों के अनुरूप रचनाकर्म कर इसी पटल पर प्रस्तुत किया…"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी विस्तृत समीक्षा का तहे दिल से शुक्रिया । आपके हर बिन्दु से मैं…"
Tuesday
Admin posted discussions
Monday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service